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    कानपुर। भारतीय संस्कृति व इस्लाम में समलैंगिक का कोई स्थान नहीं? अशफ़ाक सिद्दिकी

    रिपोर्ट- इब्ने हसन ज़ैदी 

    कानपुर। जिस आर्टिकल का सुप्रीम कोर्ट हवाला दे रही है। आर्टिकल 21 का स्वास्थ्य खराब नही होगा यह प्राकृतिक विरोध है  । भारतीय संस्कृति का विरोध है। मानसिक रोग है। पुरुष पुरुष सेक्स सेटिस्फाई हो ही नहीं सकते महिला महिला सेक्स सेटिस्फाई हो ही नहीं सकते। सुप्रीम कोर्ट को यह समलैंगिकता कानून वापस लेना चाहिए । हजरत लूत अलैहिस्सलाम जिस कौम की तरफ भेजे गए वह बहुत खुशहाल थी। उनकी बस्तियां बहुत आबाद थी लेकिन यह कौम बुराई में डूबी हुई थी लोग खुदा को नहीं मानते थे भूतों की पूजा करते थे। बटमारी करते और सबसे बड़ी बुराई इनके यहां यह थी कि वह ,औरतों को छोड़कर ,लड़कों के साथ बुरा काम करते थे। 

    कहा जाता है इस बद फैल का  बानी शैतान था। जब उसने चाहा कौम में यह बुराई पहले तो उसने एक अजीब तरकीब से काम लिया इब्लीस एक खूबसूरत लड़के की शक्ल में बाग में आता और हमेशा उसके फल फूलों को नुकसान पहुंचाता बाग का मालिक उसे पकड़ने की कोशिश करता लेकिन वह भागकर बाग से निकल जाता। खुदा ने पलट दिया पर खुदा ने पत्थरों की बारिश और उसका दुनिया में कोई नामोनिशान बाकी न रखा यह है। इस्लाम मजहब  समलैंगिक का विरोध करता है। और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच भी विरोध करता है। इसमें राष्ट्र वादी व सामाजिक भारतीय संस्कृति से मुहब्बत करने वाले लोगों और मुस्लिमो को आवाज उठानी चाहिए।

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