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    अयोध्या। निगम चुनाव में पसीने पसीने हो रही बीजेपी, नगर निगम में शामिल 41 गांव के मतदाता बदल सकते है परिणाम।

    • भाजपा के अलावा किसी दल के पास खोने को कुछ नहीं

    अयोध्या। नगरीय निकाय चुनाव में सत्तारुढ़ दल बीजेपी की राह आसान नजर नही आ रही। जिस सोच के साथ अयोध्या फैज़ाबाद नगर पालिकाओं को एक करके आनन फानन में अयोध्या नगर निगम बनाया गया फिर मानकों को पूरा करने के लिए 41 गांवो को शामिल किया गया अब वही 41 गांव व बीजेपी के आयातित उम्मीदवार बीजेपी के विजय रथ के सामने अवरोध बन गए है।

    अयोध्या नगर निकाय चुनाव में प्रमुख प्रतिद्वंद्वी एक ही जाति के हैं और दो और पार्टियों ने पिछड़ों पर दांव खेला है। राजनीति की गणित में हमेशा यहां भाजपा का पलड़ा भारी रहा है,भले ही जातीय गणित बनता बिगड़ता रहा हो। भाजपा के अलावा किसी दल के पास खोने को कुछ नहीं है। वह अपने ही गढ़ में पसीने-पसीने है।

    नगर निगम बनने के पूर्व से ही सरकार अयोध्या के विकास के लिए कोई कोर कसर नही छोड़ रही है। खास तथ्य यह है कि सीएम योगी अक्सर अयोध्या आते रहते है जिससे विकास की गति भी प्रगति पर है। लेकिन इससे अलग 41 गांवों के मतदाताओं का जातीय समीकरण विकास पर भारी पड़ता दिख रहा है। इसके साथ ही आयातित  प्रत्याशी और बीजेपी के भितरघात की जो चर्चा आम है उससे बिगड़ते समीकरण को भी नजरअंदाज नही किया जा सकता।

    वर्ष 2017 में हुए चुनाव से इस बार के हालत भिन्न है। एक तरफ बीजेपी के प्रत्याशी और महंत गिरीश पति त्रिपाठी को जिताने के लिए पहली व दूसरी पंक्ति के नेता मेहनत का दिखावा कर रहे है तो सपा प्रत्याशी डॉ आशीष पाण्डेय दीपू को भी कमतर आंकना भारी पड़ सकता है। क्योंकि पहली बार शामिल 41 गांवों में पिछड़े वर्ग का दबदबा है जिससे सपा काफी उत्साहित है।। बात दे कि नगर निगम के मुख्य कंडीडेट में महंत गिरीशपति तिवारी भाजपा,डाक्टर आशीष पांडेय सपा,राममूर्ति यादव बसपा,इंजीनियर कुल भूषण साहू आप, अनीता पाठक निर्दल और कांग्रेस से प्रमिला राजपूत मैदान में हैं। पिछले नगर निगम चुनाव में भाजपा भी कांटे की टक्कर में बमुश्किल जीती थी। 41 गांव के मतदाता इस बार भाग्य विधाता नजर आ रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी राममूर्ति यादव और समाजवादी पार्टी का सारा जोर इन 41 गांवों में लगा हुआ है और भाजपा अपने पुराने वोट संभालने में जुटी हुई हैं।

    नगरीय क्षेत्र में भाजपा का प्रायः दबदबा रहा है, फिर भी बीते दिनों के परिणाम चौंकाने वाले हैं। लंबे शासन काल में सभी खुश हैं यह कहा नहीं जा सकता। चुनावी रण में नए समीकरण इसलिए भी प्रभावी होंगे, क्योंकि वर्ग विशेष की आबादी इन क्षेत्रों में खासी है जो दूसरे दलों के वोट बैंक माने जाते हैं। नए परिसीमन और क्षेत्र विस्तार का चुनाव में प्रभाव व्यापक होगा, क्योंकि अगले वर्ष ही लोकसभा के चुनाव हैं।भले ही यह सारे क्षेत्र लोकसभा क्षेत्र का पहले भी हिस्सा रहे हैं, ताजा नतीजे का प्रभाव भविष्य पर भी पड़ेगा। भाजपा के लिए अपने गढ़ को बचाने की चुनौती है तो कई बार अयोध्या और फैजाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष पद पर रही कांग्रेस को जमीन की तलाश है। बसपा अपना आधार वोट बचाने का संघर्ष कर रही है। विपक्षी मतों का बंटवारा और ध्रुवीकरण दोनों ही दशा में नतीजा बदल जाएगा यह तय है।

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