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    नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह मामले में हुई आज सुनवाई खत्म, केंद्र ने राज्यों को पक्ष बनाने के लिए दाखिल किया हलफनामा।

    सैयद उवैस अली  नई दिल्ली, डेस्क 

    नई दिल्ली। देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग जोर पकड़ने लगी है। इसी बीच अपनी मांग को लेकर याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है । समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी रही है । केंद्र सरकार ने कहा है कि इस मामले में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सुना जाना चाहिए। याचिकाकर्ता पक्ष के वकील मुकुल रोहतगी ने कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा केंद्रीय कानून को चुनौती दी गई है राज्यों को नोटिस जारी करना ज़रूरी नहीं केंद्र ने सभी राज्यों को भी चिट्ठी लिख कर 10 दिन में अपनी राय बताने के लिए कहा है । ये सुनवाई पांच जजों की संवैधानिक बेंच कर रही है , इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक और हलफनामा दायर कर सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी । वही साथ ही ये भी कहा कि इस पर फैसला लेने का अधिकार अदालत को नहीं है । समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से अपनी पूरी शक्ति, प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार का उपयोग करने और समाज को ऐसे संघ को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करने का आग्रह किया।

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता पक्ष के वकील मुकुल रोहतगी अपनी दलीलों को रख चुके हैं । रोहतगी ने कहा है कि अगर अदालत आदेश देगी तो समाज इसे मानेगा । अदालत को इस मामले में आदेश जारी करना चाहिए । हम इस अदालत की प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार पर भरोसा करते हैं । संसद कानून से इसका पालन करे या न करे, लेकिन इस अदालत का आदेश हमें बराबर मानेगा । अदालत हमें समान मानने के लिए समाज पर दबाव डाले । ऐसा ही संविधान भी कहता है । इस अदालत को नैतिक अधिकार और जनता का विश्वास प्राप्त है । सरकार की नई याचिका का विरोध करते हुए रोहतगी ने कहा कि इन याचिकाओं में केंद्रीय कानून और विशेष विवाह अधिनियम को चुनौती दी गई है और सिर्फ इसलिए कि यह विषय संविधान की समवर्ती सूची में है, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी करने की जरूरत नहीं है। इसपर सीजेआई ने कहा, आपको इस बिंदु पर मेहनत करने की आवश्यकता नहीं है। रोहतगी ने दलील के दौरान अदालत के निर्णयों का उल्लेख किया, जिसमें सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करना शामिल है। उन्होंने कहा कि अदालत कुछ ऐसा कर रही है, जो पहले ही तय हो चुका है। उन्होंने कहा, ये विषमलैंगिक समूहों के बराबर हैं और ऐसा नहीं हो सकता कि उनका यौन अभिविन्यास (लिंग के संबंध में एक व्यक्ति की पहचान जिससे वे यौन रूप से आकर्षित होते हैं) सही हो और बाकी सभी गलत हों। 

    केंद्र सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पक्ष बनाया जाए । शीर्ष अदालत में दायर हलफनामे में केंद्र ने कहा कि उसने 18 अप्रैल को सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर इन याचिकाओं में उठाए गए ‘मौलिक मुद्दों’ पर उनकी टिप्पणियां और राय आमंत्रित की। केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से आग्रह किया कि राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को सुनवाई में पक्ष बनाया जाए । इस पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस आर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल हैं । पीठ ने समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर बुधवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई की । केंद्र की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है, इसलिए, विनम्रतापूर्वक अनुरोध किया जाता है कि सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को मौजूदा कार्यवाही में पक्षकार बनाया जाए, उनके संबंधित रुख को रिकॉर्ड में लिया जाए तथा भारत संघ को राज्यों के साथ परामर्श प्रक्रिया को समाप्त करने, उनके विचार/आशंकाएं प्राप्त करने, उन्हें संकलित करने तथा इस अदालत के समक्ष रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति दी जाए, और उसके बाद ही वर्तमान मुद्दे पर कोई निर्णय लिया जाए ।

    "पिछले पांच सालों में चीजें बदली हैं" 

    मंगलवार को भी CJI ने कहा था कि 2018 के नवतेज जौहर के फैसले के बीच, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था और अब हमारे समाज को अधिक स्वीकृति मिली है । इसे हमारे विश्वविद्यालयों में स्वीकृति मिली है । हमारे विश्वविद्यालयों में केवल शहरी बच्चे ही नहीं हैं, वे सभी क्षेत्रों से हैं । हमारे समाज ने समलैंगिक संबंधों को स्वीकार कर लिया है । पिछले पांच सालों में चीजें बदली हैं । एक स्वीकृति है जो शामिल है. हम इसके प्रति सचेत हैं ।

    • राज्यों को भी पार्टी बनाकर नोटिस किया जाए : केंद्र सरकार 

    सेम सेक्स मैरिज मामले में संविधान पीठ दूसरे दिन की सुनवाई कर रही है । केंद्र सरकार ने राज्यों की भागीदारी की बात रखी । SG तुषार मेहता ने कहा कि राज्यों से परामर्श शुरू किया है । राज्यों को भी पार्टी बनाकर नोटिस किया जाए । ये अच्छा है कि राज्यों को भी मामले की जानकारी है । याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने इसका विरोध किया और कहा कि ये पत्र कल लिखा गया है, लेकिन अदालत ने पांच महीने पहले नोटिस जारी किया था । ये गैरजरूरी है । 

    बता दें कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल 25 नवंबर को दो समलैंगिक जोड़ों द्वारा दायर अलग-अलग याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था। इन याचिकाओं में दोनों जोड़ों ने शादी के अपने अधिकार को लागू करने और संबंधित अधिकारियों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाह को पंजीकृत करने का निर्देश देने की अपील की थी।

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