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    हनुमानचालीसा विवाद पर दार्शनिक अरुण प्रकाश का लेख।

    हनुमानचालीसा विवाद पर दार्शनिक अरुण प्रकाश का लेख- 

    परिवर्तन के उन्माद' और 'अविवेकी दोहराव' से भिन्न कोई दृष्टि हमारे पास नहीं है? हम क्यों ग्रंथ से लेकर गोविंद तक को अपने आग्रह से प्रमाणित करना चाहते हैं? 

    अज्ञात की खोज 'ज्ञात पर्यायों' से और अपूर्व का प्रमाण 'पूर्व से करना' कोई प्रविधि नहीं, बुद्धि की परिधि है। दारिद्र्य है। इतने भर का ही वश है! इससे आगे कुछ करना सोचना इन लोगों के लिए संभव ही नहीं। जो लोग दोहरा रहे हैं, उन्हें रट गया है। बदलाव से उन्हें बस इतनी पीड़ा है कि दोहराव में उन्हें दुःख होगा। अलबत्ता उन्होंने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि उनके दोहराव का यह रूप उन्हें कहां से मिला? स्वयं तुलसी तो उन्हें दे नहीं गए थे बल्कि एक प्रकाशक से मिला है। लेकिन उन्हें रट गया है तो अब क्यों बदला जाए! 

    परिवर्तन के उन्मादी भाषाई दृष्टि से उचित-अनुचित विचार रहे। गाथा पर  कहां व्याकरण का शासन है! न ही आप्त का अनुसंधान शास्त्र की स्वीकृति का मोहताज है। तब भी लोग व्याकरण की रिंच लगा रहे हैं। श्लोक कॉपी-पेस्ट कर रहे हैं। यह सब स्थितियां हैं, जो दिख रही हैं। 

    मुझे यह दोनों स्थितियां एक जैसी लगती हैं। मैं दोनों को दया का पात्र समझता हूं।साथ ही, मुझे तरस तो कथित आचार्यों पर भी आ रही है जो परिवर्तन या दोहराव के समर्थन में पूर्व के प्रमाण दे रहे हैं, शब्द प्रमाण दे रहे हैं। वह पूरे विमर्श को एक ऐसे खांचे में धकेल रहे हैं, जहां तुलसी का आधा वाङ्गमय संदेहास्पद हो जाएगा। तुलसी आप्त पुरुष हैं, उन्होंने अपना अनुसंधान कहा है। उस अनुसंधान को शब्द से या पूर्व से प्रमाणित कैसे किया जा सकता है? उदाहरण के लिए राजा प्रतापभानु प्रसङ्ग का उससे पूर्व में कहां उल्लेख है? उसका शब्द प्रमाण क्या है? आज जो लोग हनुमानचालीसा पर अपने आग्रह थोपने का प्रयास कर रहे हैं, और उसके समर्थन में पूर्व के प्रमाण दे रहे हैं। इस रास्ते तो तुलसी बाबा का आधा वाङ्गमय निपट जाएगा। 

    हनुमानचालीसा की चौपाइयाँ  उचित-अनुचित या सही गलत के विमर्श का विषय नहीं हैं। पूर्व के प्रमाणों व प्रचलित प्रसङ्ग के आधार पर तो बिल्कुल भी नहीं। अधिक से अधिक यह पड़ताल हो सकती है कि जो चालीसा छापी गई वह पुरानी पांडुलिपियों से मेल खाती है या नहीं। यदि पांडुलिपि और प्रकाशन में कोई भेद है तो उसपर चर्चा हो सकती है।तुलसी के प्रयोगों पर चर्चा अनावश्यक होगी।

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