पंचनद। चंबल में 'पंचनद कैम्पिंग फेस्टिवल', लीजिए ऊंट सवारी का लुत्फ, अब डाकू दर्शन नहीं चंबल की खूबसूरती और विकास की बातें..।
- पर्यटन विभाग, झूमके और चंबल विद्यापीठ का साझा आयोजन..
पंचनद। चंबल में मई की गर्मी का लुत्फ उठाना हो तो 20 से 23 मई की तारीख रिजर्व कर लीजिए। पांच नदियों के संगम स्थल पर उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग, झुमके एंव चंबल विद्यापीठ का साझा आयोजन 'पंचनद कैम्पिंग फेस्टिवल' होने जा रहा है। इस फेस्टिवल में आयुर्वेदिक सैंड बाथ, सूफी योगा, राक पार्टी, ऊंट सवारी, कवि सम्मेलन, सैंड गेम, चंबल फोटो गैलरी कंपटीशन, गायन, कैंडल डेकोरेशन कंपटीशन, बीच इवेंट्स एवं सैंड आर्ट कंपटीशन होंगे।
जालौन, औरैया, इटावा और भिन्ड जनपद मुख्यालयों से समान दूरी पर पंचनदा संगम है, जो कि विश्व का सबसे अनोखा स्थल माना जाता है। जहां चंबल, यमुना, सिंध, पहुंज और क्वारी नदियों का महासंगम होता है। चंबल के बीहड़ों में आध्यात्मिक और पर्यटन के नजरिये से पंचनद अद्भुत स्थल है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की 2,100 वर्ग मील दूरी तय करके राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य यहां विराम पाता है। इससे यहां चांदी की तरह चमकते विशाल रेतीले मैदान दिखते हैं। राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में तमाम जलचरों और नभचरों का ठिकाना होने से रेत खनन पर प्रतिबंध है।
आजादी से पहले और आजादी के बाद सरकारों की बेरूखी से जो ब्रांडिंग पंचनदा की होनी चाहिए थी वो नहीं की गई। लिहाजा पंचनदा का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जितनी लोकप्रियता और ख्याति इस महासंगम मिलनी चाहिए थी वो नहीं मिल सकी। लंबे अरसे से पंचनदा सरकारी अनदेखी के कारण पंचनदा को देश का सबसे बड़ा पर्यटन हब नहीं बन पाया। अब अगर सरकारें नेकनीयती से पंचनदा और इसके आस-पास ठोस रणनीति बनाकर विकास के थमे पहिये को घुमाती हैं तो आने वाले दिनों में पंचनद घाटी विश्व पर्यटन मानचित्र पर चमक सकती है।
पांच नदियों के संगम पर चांदी की तरह चमकते विशाल रेतीले मैदान गोवा की खूबसूरती को मात देते हैं। चंबल अंचल में बड़े पैमाने पर रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंट पाले जाते थे लेकिन अब ऊंट पालको की संख्या में लगातार गिरावट देखी जा रही है। एक दशक से अधिक समय से चंबल अंचल की बेहतरी के लिए कार्य करने वाले चंबल विद्यापीठ के संस्थापक डॉ. शाह आलम राना कहते हैं कि बीहड़वासियों को सामान उठाने के लिए ऊंट एक सहारा रहा है। चंबल नदी के किनारे रहने वाले ऊंट पालकों पर आये दिन भारतीय वन अधिनियम और वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज होती रहती है। इसे ऊंटों की तादाद में भारी गिरावट देखी जा रही है। ऊंट पालकों की भी आजीविका का सवाल है। अगर चंबल में ऊंटों के मार्फत पर्यटन के रास्ते खुलते हैं तो ऊंटों की तादाद में और इजाफा हो सकेगा।
तीन दिवसीय पंचनद कैम्पिंग फेस्टिवल में सैलानी अन्य तमाम आयोजनों के साथ ऊंट सवारी का भी का आनंद ले सकेंगे। सजे धजे ऊंट की सवारी फोटोग्राफी के शौकीने के लिए जहां चार चांद लगाएगी वहीं पलायन से जूझ रहे बीहड़वासियों के लिए रोजगार के अवसर भी मुहैया कराएगी। चंबल में पर्यटन को बढ़ाने के मकसद से इस तीन दिवसीय सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन में सैलानी अपनी रूचि के अनुसार हिस्सेदारी कर सकेंगे। क्योंकि दस्यु दलों के सफाए के बाद सैलानी यहां बिना रोक-टोक के पहुंच सकेंगे।
चंबल में गोलियों की तड़तड़ाहट अब गुजरे जमाने की कहानी है। अब यहां सैलानी आते हैं और युवा पढ़ाई, खेलकूद के साथ आगे बढ़ रहे हैं। यह संभव हो पाया है बस्ती जनपद के महुआ डाबर गांव के जुनूनी युवा शाहआलम की कोशिशों से। उच्च शिक्षित शाहआलम के प्रयासों को देख योगी सरकार का पर्यटन विभाग भी संग हो लिया है। शाह आलम ने चंबल की भौगोलिक व संस्कृति को जानने के लिए बीहड़ में 2800 किमी साइकिल चलाया था।
फेस्टिवल में शामिल होने के लिए प्रति व्यक्ति वेज के लिए 1150 नानवेज व एक बच्चे के साथ वेज में 1250 रुपए शुल्क निर्धारित किया गया है। काकटेल के साथ फूड का शुल्क प्रति व्यक्ति 2500 रुपये है। प्रतिभाग करने के लिए डब्लू डब्लू डाट चंबलटूरिज्म डाट काम पर आनलाइन बुकिंग कर सकते हैं।
पांच नदियों के संगम पर तीन दिवसीय ‘पंचनद कैम्पिंग फेस्टिवल’ की तैयारी को लेकर जिला पर्यटन अधिकारी इटावा, जिलाधिकारी औरैया, झूमके और चंबल विद्यापीठ के पदाधिकारियों की बैठक बीते 21 अप्रैल को हो चुकी है। आयोजन को सफल बनाने के लिए अभी से आयोजन समिति से जुड़े लोग अपने हिस्से की तैयारी में लगे हुए हैं।