अशिष्ट सियासत के पीले चावल।
राकेश अचल का लेख। अतीक,असरफ अब अतीत हो गये हैं।नये पन्ने पलटिए। देखिए कि मुल्क की बेहद अशिष्ट हो चुकी सियासत मप्र में मतदाताओं को पीले चावल क्यों बांटने पर मजबूर है ? मुल्क में पीले चावल बांटकर बच्चों के विवाह के लिए सबसे पहले देवताओं को और फिर बच्चों के मामाओं को आमंत्रित करने की परंपरा है। यही परंपरा बाद में मुहावरे में बदल गयी।
मप्र में भाजपा को 2003 में सुश्री उमा भारती की प्रचंड मेहनत सत्ता में लेकर आई थी। उमा जी सत्ता का सुख केवल 9 माह ही ले सकीं। बाद में बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता का सुख 2018 तक भोगा। चौहान की लापरवाही से भाजपा का सिंहासन 2018 के विधानसभा चुनाव में उखड़ गया। 18 महीने की सियासी बेइमानी से भाजपा बिना जनादेश के सत्ता में तो आ गई लेकिन जनता को रास नहीं आई। आज मप्र में भाजपा की दशा 2003 के पहले जैसी ही है और इसीलिए भाजपा को 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को पीले चावल बांटना पड़ रहे हैं।
भाजपा की खराब हालत को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ मोहन भागवत को बार बार मप्र आना पड़ रहा है। मोदी जी पिछले हफ्ते भोपाल आए थे, अब फिर रीवा आ रहे हैं। प्रधानमंत्री जी की सभाओं के लिए भाजपा को पीले चावल बांटना पड़ रहे हैं। दरअसल एक तो मप्र में गर्मी शुरू हो गई है, दूसरे जनता का भाजपा के प्रति मोहभंग भी हुआ है। इसलिए भीड़ जुटाना सबसे बड़ी समस्या है।
आपको बता दें कि पिछले 16 अप्रैल को ही ग्वालियर में डाक्टर भीमराव अम्बेडकर महाकुंभ के लिए भीड़ जुटाने में भाजपा सरकार और संगठन को पसीना आ गया। प्रामाणिक आंकड़े नहीं हैं लेकिन अनुमान है कि भीड़ जुटाने पर 16 करोड़ रुपए खर्च किए गए। अकेले परिवहन विभाग ने सरकार से 7 करोड़ रुपए मांगे थे। फिर भी भीड़ जुटाई नहीं जा सकी।
बहरहाल 24 अप्रैल को प्रधानमंत्री जी के रीवा प्रवास हेतु भाजपा संगठन और सरकार प्राणप्रण से जुटे हैं। रीवा मप्र के विंध्य क्षेत्र का राजनीतिक केंद्र है। यहां इस बार भाजपा पहले के मुकाबले बहुत कमजोर हो गई है। चंबल, ग्वालियर में भाजपा की स्थिति पहले से डांवाडोल है। विंध्य में भाजपा के पास न कोई महाराज है और न शिवराज।सारा दारोमदार सरकार की उपलब्धियों पर है।
मध्य प्रदेश में विंध्य को अलग राज्य बनाने की मांग अब जोर पकड़ने लगी। ऐसे में बीजेपी के मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी के बगावती तेवर सामने आए। उन्होंने सोमवार को विंध्य जनता पार्टी बनाई। उन्होंने तीस सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है।
आपको याद होगा कि नारायण त्रिपाठी भाजपा में आने से पहले मैहर विधानसभा सीट कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के टिकट से भी चुनाव लड़ चुके हैं। चार बार के विधायक त्रिपाठी विंध्य क्षेत्र के काफी मजबूत नेता माने जाते हैं। 2014 लोकसभा चुनाव के समय वे कांग्रेस में थे। लेकिन नारायण त्रिपाठी ने 2016 के उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2018 में वे दोबारा भाजपा से जीतकर विधानसभा पहुंचे।
अब नारायण त्रिपाठी विंध्य के ज्योतिरादित्य सिंधिया बनना चाहते हैं। उनकी नजर विंध्य क्षेत्र की 30 विधानसभा सीटों पर हैं। त्रिपाठी अलग विंध्य प्रदेश के मुद्दे को उठाकर यहां की अधिकांश सीटें जीतने का मन बना रहे हैं। उन्होंने मैहर में आयोजित विंध्य प्रीमीयर लीग सीजन 2 के समापन के अवसर पर सार्वजनिक रूप से ऐलान किया है कि शहडोल, रीवा संभाग की 30 विधानसभा सीटों पर वे अपनी पार्टी से प्रत्याशी उतारेंगे। उन्होंने नया नारा दिया है कि ’तुम मुझे 30 दो, मैं तुम्हें 2024 में विंध्य प्रदेश दूंगा’।
मप्र में विंध्य बने या न बने लेकिन भाजपा की सत्ता में वापसी आसान नहीं है। विंध्य जैसी मांग कल बुंदेलखंड में भी उठ सकती है।न भी उठे तो भी बुंदेलखंड में भाजपा की हालत पतली है। बुंदेलखंड के उम्रदराज भाजपा नेता गोपाल भार्गव और उमा भारती को लेकर अब भाजपा आश्वस्त नहीं हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री जी ही आखरी उम्मीद हैं। जनता पीले चावल का मान रखेगी या नहीं, भगवान ही जाने।