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    राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुधा मूर्ति को पद्म भूषण सम्मान से नवाजा, कौन हैं सुधा मूर्ति, पढ़ें पूरी खबर।

    राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में साल 2023 के लिए 3 पद्म विभूषण, 5 पद्म भूषण और 47 पद्म श्री पुरस्कार प्रदान किए। आपको बता दें कि लेखक एवं परोपकार के कार्य से जुड़ीं सुधा मूर्ति, भौतिक विज्ञानी दीपक धर, उपन्यासकार एस.एल. भैरप्पा, प्रख्यात पार्श्व गायिका वाणी जयराम और वैदिक विद्वान त्रिदंडी चिन्ना जे. स्वामीजी को भी पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इस समारोह के दौरान राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में कई प्रतिष्ठित हस्तियों, सुधा मूर्ति की बेटी एवं ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की पत्नी अक्षता और विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी नजर आए। आपको बता दें कि समारोह में फिल्म 'आरआरआर' के गीत 'नाटू नाटू' के लिए भारत का पहला ऑस्कर जीतने वाले संगीत निर्देशक एम.एम. कीरावानी और बॉलीवुड अभिनेत्री रवीना टंडन को पद्मश्री दिया गया।

    • सुधा मूर्ति 'सादा जीवन उच्च विचार

    'सादा जीवन उच्च विचार' वाले सिद्धांत को अपनी रियल लाइफ में अपनाने वाली सुधा मूर्ति आईटी इंडस्ट्रियलिस्ट और इंफोसिस के फाउंडर एन आर नारायणमूर्ति की पत्नी होने के साथ -साथ एक इंस्पायरिंग वुमन हैं। नारायण मूर्ति ने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से 10,000 रुपये लेकर इंफोसिस की नींव रखी थी। सोशल वर्क, इंजीनियरिंग, लेखन और घर संभालने जैसी अलग-अलग भूमिकाओं को सुधा मूर्ति ने शिद्दत से निभाया। सामाजिक क्षेत्र में अति विशिष्ट सेवा कार्यों के लिए सुधा मूर्ति को पद्म भूषण सम्मान से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस समारोह में नवाजा। इससे पहले साल 2006 में सुधा मूर्ति को पद्मश्री मिला था। 

    • सलवार-कमीज के लिए सुनना पड़ा था ताना

    सुधा मूर्ति को सादगी से जीवन जीना पसंद है। आज के समय में उनका दामाद ब्रिटेन का पीएम है। लेकिन कभी इसी ब्रिटेन में सुधा को सलवार-कमीज पहनने पर नस्‍लभेदी टिप्पणी सुननी पड़ी थी। मूर्ति से कहा गया था कि आपको इकॉनमी में खड़े होना चाहिए क्‍योंकि आप 'कैटल क्‍लास' से हैं। सुधा ने एक पॉडकास्‍ट के दौरान उस घटना के बारे में बताया था। लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर सुधा मूर्ति से यह बात कही गई थी। आज उसी देश के पीएम सुधा के दामाद हैं। सुधा मूर्ति ने बताया था, 'मैंने सलवार-कमीज पहना था और मैं लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर थी। तभी किसी ने कहा कि तुम्‍हें इकॉनमी क्लास में खड़े होना चाहिए, क्‍योंकि तुम कैटल क्‍लास से हो। उन्‍हें लगा कि मुझे इंग्लिश नहीं आती... आजकल लोग देखते हैं... आपने साड़ी पहनी है, सलवार-सूट पहना है और आप सिंपल दिख रहे हैं, कोई मेकअप नहीं है तो इसका मतलब है कि आप अनपढ़ हैं।'

    • पति ने 10 हजार रुपये मांगकर शुरू की थी कंपनी

    इंफोसिस के फाउंडर एन आर नारायण मूर्ति ने पत्नी सुधा मूर्ति से 10 हजार रुपये मांगकर कंपनी शुरू की थी। नारायण मूर्ति कहते हैं कि उनके लिए पत्नी सबसे बड़ी ताकत हैं। हर मुश्किल में वो उनके साथ खड़ी रहीं। सुधा से जब पूछा गया कि 10,000 रुपये देते समय क्या आपको इसे लेकर चिंतित नहीं थी, तो जानिए उन्होंने क्या कहा, 'जब मेरी शादी हुई तो मेरी मां ने मुझे सीख दी थी कि अपने पास कुछ रुपये रखने चाहिए। इनका उपयोग सिर्फ इमरजेंसी में करना चाहिए। इन पैसों का उपयोग साड़ी, सोना या और कुछ खरीदने में नहीं करना चाहिए। इसे एमरजेंसी में ही यूज करना चाहिए। मैं हर महीने पति और अपने वेतन में से कुछ रुपये अलग रखती थी। नारायण मूर्ति को इसकी जानकारी नहीं थी। ये रुपये मैं एक बॉक्स में रखती थी। इस बॉक्स में 10,250 रुपये हो गए थे।'

    • मदद का अनूठा तरीका

    बेंगलुरु जा रही एक ट्रेन में टीसी की नजर सीट के नीचे दुबकी हुई ग्यारह वर्ष की एक लड़की पर पड़ी। लड़की ने रोते हुए कहा कि उसके पास टिकट नहीं है। टिकट चेकर ने उसे डांटते हुए गाड़ी से नीचे उतरने को कहा। वहां ट्रेन में सुधा मूर्ति भी मौजूद थीं। उन्होंने तुरंत कहा कि इस लड़की का बेंगलुरु तक का टिकट बना दो इसके पैसे मैं दे देती हूं। टिकट चेकर का कहना था कि मैडम टिकट बनवाने के बजाय इसे दो-चार रुपये दे दो तो ये ज्यादा खुश होगी। लेकिन मूर्ति ने लड़की का टिकट ही लिया। उन्होंने लड़की से पूछा कि वह कहां जा रही है तो उसने कहा, 'पता नहीं मेम साब।' लड़की का नाम चित्रा था। मूर्ति उसे बेंगलुरु ले गई और एक स्वयंसेवी संस्था को सौंप दिया। चित्रा वहां रहकर पढ़ाई करने लगी, मूर्ति भी उसका हालचाल पता करती रहती। करीब बीस साल बाद मूर्ति अमेरिका में एक कार्यक्रम में गई थीं। कार्यक्रम के बाद वे जब अपना बिल देने के लिए रिसेप्शन पर आई तो पता चला कि उनके बिल का पेमेंट सामने बैठे एक कपल ने कर दिया है। मूर्ति उस कपल की तरफ मुड़ी और उनसे पूछा कि आप लोगों ने मेरा बिल क्यों भर दिया? इस पर युवती ने कहा, ‘मैम, गुलबर्गा से बेंगलुरु तक के टिकट के सामने यह कुछ भी नहीं है।’ वह युवति चित्रा ही थी। मूर्ति की मदद ने उसका जीवन बदल डाला था।

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