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    कानपुर। रमज़ान के आखिरी अशरे का ऐतिकाफ करना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्न्त : इज़हार मुकर्रम कासमी

    रिपोर्ट- इब्ने हसन ज़ैदी 

    कानपुर। ऐतिकाफ का महत्व इससे ज़्यादा क्या होगा कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमेशा इसका एहतमाम फरमाते थे। इन विचारों को मस्जिद नूर पटकापुर के इमाम व मुफ्ती ए शहर कानपुर इज़हार मुकर्रम क़ासमी ने व्यक्त करते हुए कहा कि जब से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हिजरत करके मदीना तशरीफ लाये उस समय से लेकर दुनिया से पर्दा फरमाने तक आप स0अ0व0 प्रतिवर्ष ऐतिकाफ करते रहे, और अगर एक साल ऐतिकाफ ना कर सके तो अगले साल 20 दिन का एतिकाफ फरमाया।

    मुफ्ती इज़हार मुकर्रम क़ासमी ने कहा कि ऐतिकाफ में अल्लाह तआला के घर में रह कर अल्लाह की निकटता प्राप्त की जाती है, दुनिया के मोह को त्यागकर अल्लाह की तरफ ध्यान लगाया जाता है। ऐतिकाफ करने वाले की मिसाल ऐसी बताई गई है वह अल्लाह के दर पर आकर पड़ जाये और जब तक अल्लाह के राज़ी होने का परवाना नहीं मिल जाता वह नहीं जायेगा, ऐसे में अल्लाह की रजा व मग़फिरत की उम्मीद और उसके करम पर विश्वास रखना चाहिए।

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