Header Ads

  • INA BREAKING NEWS

    सुल्तानपुर। देश-विदेश की यात्राओं का जीवंत दस्तावेज है 'देस-परदेस'।

    • पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने लिखी है इसकी भूमिका

    सुल्तानपुर। वरिष्ठ राजनीतिज्ञ एवं समाजशास्त्री भाजपा के राष्ट्रीय परिषद सदस्य डॉ एमपी सिंह की कृति 'देस-परदेस' यात्राओं का जीवंत दस्तावेज है। इसकी भूमिका पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने लिखी है। श्री सिंह मूल रूप से न-तो लेखक हैं, और न-ही कवि। लेकिन राजनीतिक, सामाजिक विषयों पर उनकी गहरी पकड़ है। उनका एक लंबा अनुभव रहा है। 'देस-परदेस' उसी अनुभव व सोशल साइट पर विस्तार से लिखने पर मिले प्रोत्साहन का प्रतिफल है। राणा प्रताप पीजी कालेज में प्रोफेसर, समाजशास्त्र के विभागाध्यक्ष रहे डॉ एमपी सिंह मूलतः चंदौली जिले के रहने वाले हैं। भाजपा में जिलाध्यक्ष, क्षेत्रीय अध्यक्ष से लेकर प्रदेश की विभिन्न कमेटियों में लंबे समय तक पदाधिकारी रहे सिंह वर्तमान में राष्ट्रीय परिषद एवं प्रदेश कार्यकारिणी में सदस्य हैं। डॉ सिंह ने रिसर्च पेपर तो बहुत लिखे हैं, लेकिन किताब की शक्ल में पहली बार कुछ लिखा है। 

    पढ़ने-पढ़ाने, लिखने में उनकी रुचि हमेशा रही है। मौका मिलता तो वे अपनी अभिरुचि के अनुसार सोशल साइट पर लिख देते। उनसे जुड़े लोग उसे पढ़ते और सराहना करते। जवाब में डॉ साहब भी कुछ लिख देते। सिलसिला यहीं तक सीमित था। लेकिन अभिरुचि के अनुसार लिखे इन आंशिक लेखों को विस्तार से लिपिबद्ध करने का सुझाव एवं दबाव अपने दोस्तों शुभचिंतकों से तब मिला जब उनकी जीवनसंगिनी कलावती सिंह इस दुनिया में नहीं रहीं और डॉ साहब अकेलापन महसूस करने लगे। दिल्ली की वरिष्ठ लेखिका कुसुमलता सिंह व एवं वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक राज खन्ना प्रेरक बने। अपनों से मिले स्नेह ने उन्हें यात्रा वृतांत को लिपिबद्ध करने को प्रेरित किया। हालांकि डॉ सिंह इसके लिए राजी न थे। उसकी मुख्य वजह उनकी चिंता के केंद्र में पाठकों का टोटा एवं किताबों से विमुख हो रहे लोग थे। इन सब चिंताओं के बीच उन पर उनके शुभचिंतकों का दबाव भारी पड़ा और उन्होंने लिखना शुरू किया। रामायणकालीन स्थल धोपाप, सीताकुंड, विजेथुआ महावीरन से शुरू 'देस-परदेस' की यह यात्रा भारत के विभिन्न राज्यों से निकलती लंदन, पेरिस, सिंगापुर, इंडोनेशिया, स्विट्जरलैंड, चीन बीजिंग सहित कई देशों तक पहुँची। उन स्थलों की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक दृष्टिकोण के साथ जो भी विशिष्टता रही उस सबका इसमें जिक्र है। श्री सिंह के लिए सबसे शकून वाली बात अब यह है, कि आज उनकी कृति 'देस-परदेस' जिले के प्रमुख संस्थानों के पुस्तकालयों की शोभा है।

    Post Top Ad


    Post Bottom Ad


    Blogger द्वारा संचालित.