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    हिंदी में पढ़ सकेंगे अजमल की रचनाएं, तर्जुमा कर रहें हबीब, विश्व विख्यात नज़्म 'हिंदुस्तान' भी किताब की शक्ल में उर्दू बाद अब हिंदी में आएगी नजर।

    सुल्तानपुर। अंतर्राष्ट्रीय शायर रहे मरहूम अजमल 'सुलतानपुरी' की उर्दू में प्रकाशित किताबें अब हिंदी में भी आने वाली है। हिंदी प्रेमियों को यह तोहफा अजमल के शागिर्द हबीब 'अजमली' देने जा रहे हैं। उर्दू में छपी उनकी रचनाओं के संग्रह को वह हिंदी में तर्जुमा कर रहे हैं। लगभग आधे से अधिक यह कार्य पूर्ण भी हो चुका है। उम्मीद है कि लोक सरोकार समिति इसके प्रकाशन में मददगार की भूमिका निभाएगी। गौरतलब है, कि अजमल की रचनाओं का जो संग्रह उनके शुभचिंतकों द्वारा किताब की शक्ल में लाई गई वे सब उर्दू में हैं। जिसके कारण वे किताबें आम-आदमी की पहुँच से दूर ही रहीं। यूं तो अजमल सुलतानपुरी ताउम्र मुसलसल लिखते ही रहे। लेकिन दुर्भाग्य ही कहिए कि उनके जीतेजी उनकी रचनाएं मुकम्मल दस्ताबेज न बन सकीं। इसके पीछे की वजह उनकी मुफलिसी थी। धनाभाव के चलते उनके जीतेजी जो रचनाएं किताब की शक्ल में नही आ सकीं उन पन्नों को परिजनों ने अभी भी सहेज कर रखी हैं। आज भी वे प्रकाशन की बाट जोह रहीं हैं। वैसे तो अजमल को सुनने, चाहने वालों की जमात लम्बी पहले भी थी आज भी है। 

    लेकिन उनकी रचनाओं को किताब की शक्ल में लाने की कोशिश कम ही हुई। गनपत सहाय पीजी कॉलेज में उर्दू विभाग की अध्यक्ष डॉ जेबा महमूद एवं उनके शुभचिंतक शायर हबीब अजमली ने एक कोशिश जरूर की थी। जहाँगीर लिटरेरी सोशल एंड वेलफेयर सोसाइटी इलाहाबाद द्वारा अजमल की हिंदी में 'सफर ही तो है' नामक एक ही किताब प्रकाशित हुई बाकी जो छपी वह उर्दू में ही छपी है। जिसमें 1954 में रुहे तबस्सुम, 1993 में लवें, झुरमुट, 1994 में गजल की खुशबू, 2013 में सफर ही तो है, 2019 में कफ़स ता कफ़स प्रमुख रहीं हैं। देश एवं दुनिया में सुल्तानपुर जैसे छोटे से शहर का नाम रोशन करने वाली इस शख्सियत का जन्म कुड़वार ब्लाक में हरखपुर गांव की माटी में हुआ था। 'अजमल सुलतानपुरी' का जीवन संघर्षों से भरा रहा। जब छोटे थे तभी इनके पिता की मृत्यु हो गई। जिसके चलते इनकी शिक्षा प्राथमिक से आगे नही हो पाई। परिस्थिति ऐसी बनी कि पंद्रह साल की उम्र में ही इन्हें मंचों पर आना पड़ा। इस क्षेत्र में आने के बाद अजमल ने काव्य पाठ के अलावा कभी कुछ नही किया। इससे मिली पारिश्रमिक से ही उनका खर्च चलता था। जब वे बीमारी के चलते मंचों से दूर हुए और आय का स्रोत बंद हुआ तो प्रख्यात कवि डॉ हरिओम पंवार की तरफ से प्रतिमाह पांच हजार का सहयोग उनकी मृत्यु तक मिलता रहा। 29 जनवरी 2020 को 97 साल की उम्र में वे दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। उनकी आवाज मंच पर यूं तो काफी वक्त से खामोश ही थी। बीमारी के चलते मंचों से दूरी बना ली थी, लेकिन अपने गृह जिले में काव्यपाठ के लिए आने वाले अतिथियों के सम्मान में वे मंचों पर सजी महफ़िल के बुलावे को मुहब्बत में कभी नकार नही पाए। हिन्दू-मुस्लिम एकता के अलंबरदार रहे अजमल अब इस दुनिया में नही हैं। लेकिन उनकी खुद्दारी उनकी रचनाएं लोगों की जुबां पर आज भी हैं। अजमल के एकलौते बेटे अशरफ वेग उर्फ 'अनवर सुलतानपुरी' का 13 जनवरी 2023 को निधन बाद उनके दो पोते में से 'तारिक अजमली' ही अब उनकी विरासत को संभाले हुए हैं। 

    • औरों से अलहदा थे अजमल'

    अदब की दुनिया के बादशाह 'अजमल सुलतानपुरी' औरों से अलहदा थे। मुफलिसी में रहे। रचनाएं भले न छप सकी, लेकिन अपने लिए कभी किसी के आगे हाथ नही फैलाया। फैलाया भी तो मुल्क की सलामती के लिए। मुफलिसी में रहे लेकिन पैसे के लिए कलम न उठाई। उनकी खुद्दारी ही रही कि फिल्मों के लिए गीत लिखने के मिले ऑफर को इसलिए नकार दिया कि उन्हें यह मंजूर नही था कि इनके लिखे गाने पर बहू, बेटियां नाचें। उनका यह दर्द उनकी रचनाओं में साफ झलकता है। 

    • 'काव्यपाठ के लिए पाकिस्तान के हर आमंत्रण को ठुकराया'

    भारत-पाकिस्तान बंटवारे का दर्द उन्हें ताउम्र सालता रहा। विभाजन एवं युद्ध से ताउम्र इतना आहत रहे, कि सात दशक तक मंचों पर काव्य पाठ किया लेकिन पाकिस्तान में कविता पढ़ने नही गए। पाकिस्तान से काव्य पाठ के लिए मिले हर आमंत्रण को ना सिर्फ ठुकराया बल्कि तल्ख अंदाज में हुक्मरानों को जवाब भी दिया। उनकी निगाहें अपनी रचनाओं में बंटवारे के पहले का 'हिंदुस्तान' ढूढ़ती रहीं। उनके साथ उनकी रचनाएं भी औरों से अलहदा हैं। 'हिंदुस्तान' नामक नज़्म का हिस्सा, 'मुसलमां और हिन्दू की जान कहां है मेरा हिन्दुस्तान मैं उसको ढूढ़ रहा हूं, मेरे बचपन का हिन्दुस्तान न बंगलादेश न पाकिस्तान मेरी आशा मेरा अरमान वो पूरा-पूरा हिन्दुस्तान मैं उसको ढूढ़ रहा हूं...यही वह  पंक्तियां रही जो विश्व विख्यात हुईं। जिससे उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान भी मिली। लेकिन कद के अनुरूप उन्हें वह सम्मान नही मिला जिसके वे हकदार थे। 'हिंदुस्तान' नामक विश्व विख्यात उनकी नज्म में उनके ख्वाब, उनके दर्द, उनका अपनापन, उनकी ख्वाहिश दिखती है।

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