कानपुर। दशकों से यंहा नजमी और नासिर जैसे लोग अपनी देखरेख में होलिका को करते है तैयार।
कानपुर। वैसे तो होली की ज्वाला में कलेश, वैमनष्य, भेद भस्म करने की मान्यता है। लेकिन कानपुर की होलिकाये खासतौर पर इन मान्यताओं को साकार कर रही है। जिन मुस्लिम इलाको में हिन्दू आबादी नगण्य रह गयी है। लेकिन वंहा बसे मुस्लिमो ने होलिका की रवायत टूटने नही दी। दशकों से यंहा नजमी और नासिर जैसे लोग अपनी देखरेख में होलिका तैयार करते है। हिन्दू वंहा होलिका जलाकर पूजा परिक्रमा करते है।
गणेश शंकर विद्यार्थी और हसरत मोहानी के शहर में यह मोहब्बत की मिसाल रंग बिखेरती है। कानपुर में 1931 के बाद कई बदलाव देखे, उसी साल दंगे हुए और लोगो ने पलायन कर लिया। मिश्रित आबादी वाले मोहल्लों से हिन्दू दूसरी जगह जाकर बस गए। मोहल्लों में होलिका की परंपरा ना टूटे, इसके लिए मुस्लिमो ने खुद होली लगवाने का इंतजाम संभाल लिया।
कानपुर के कुली बाजार में लगभग 48 वर्षो से हिन्दू मुस्लिम मिलकर होलिका सजाते है, यहा पर हर वर्ष होलिका को एक नई थीम के रूप में दर्शाया जाता है। इस बार इस होलिका में तुर्की में आए भूकंप को दर्शाया गया है,,साथ ही भूकंप आने पर किस तरह से अपना और दूसरो का बचाव करना है इसको भी दर्शाया गया है। इसके साथ ही लोगो मे जागरूकता फैले इसके लिए तरह-तरह की सुंदर झांकिया सजाई गई है।
मोहम्मद अली साहनी, होलिका सजाने वाले