अम्बेडकरनगर। दिलीप के ढोलक की थाप ने श्रोताओं को बनाया दीवाना, गुमनामी से निकलते ही मचाया धमाल।
अम्बेडकरनगर। संगीत की विधा कोई भी हो श्रोताओं के कानों में मिश्री सी घोल देती है। यही कारण है इस संगीत श्रवण के दौरान व्यक्ति तमाम दुखों को भूल जाता है। कुछ ऐसा ही जिले के होनहार दिलीप शर्मा की अंगुलियों में भी है जो ढोलक पर थिरकते ही श्रोताओं को दीवाना बना लेती हैं। आज दिलीप शर्मा उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होकर अपनी ढोलक की थाप से अंबेडकरनगर जिले का मान बढ़ा रहे हैं।
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संगीत साधना के दौरान ढोलक पर थाप लगाते दिलीप शर्मा |
दशक भर से गुमनामी में जी रहे टांडा निवासी दिलीप शर्मा को खोज कर ख्यातिलब्ध बांसुरी वादक मुकेश मधुर ने सांस्कृतिक मंचों पर ला खड़ा किया है। तबले और बांसुरी की युगलबंदी के मुकाबले ढोलक और बांसुरी की युगलबंदी से इन दोनों कलाकारों ने लोगों को चकित कर दिया है। बकौल दिलीप शर्मा ढोलक एक लोक वाद्य है किंतु इस साज़ से शास्त्रीय अंग बजाना असम्भव कार्य है। किंतु साधना और लगन की ताकत से इसे अब सम्भव कर लिया है।
अभी बीते दिनों कानपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में राग मालकौंस अध्धा ताल में निबद्ध रचना पर मुकेश की बांसुरी का साथ राग पहाड़ी व दादरा ताल पर दिलीप शर्मा ने शास्त्रीय अंग पखावज के बोल बजाकर अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है। पकड़ी भोजपुर (रामपुर कला) टांडा निवासी इस होनहार ने कठिन ताल साधना से असम्भव को सम्भव कर दिखाया है। वे संगीत की कई प्रतियोगिताओं में भाग ले चुके हैं। अंबेडकरनगर महोत्सव के दौरान शानदार ढोलक वादन के बाद चर्चा में आए दिलीप शर्मा को अब तक संस्कार भारती द्वारा कला साधक सम्मान के अलावा ताल ब्रह्म सम्मान, ताल सम्राट सम्मान मिल चुके हैं। इनके पिता राजेन्द्र प्रसाद शर्मा दिलीप को महान ढोलक वादक बनाना चाहतें हैं। पिता के उन्हीं सपनों को साकार करने को दिलीप ने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है।
एक मुलाकात के दौरान स्वदेश से बातचीत में दिलीप शर्मा ने बताया उन्हें संगीत से बचपन से ही लगाव था। हाईस्कूल तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद रोजी रोटी के लिए मुंबई जाकर इलेक्ट्रिशियन का काम करते हुए भजन कीर्तन में ढोलक वादन का कार्य शुरू किया था। इसके बाद लगातार संगीत साधना जारी रही। आज विषम ताल में निपुणता के साथ शास्त्रीय अंग को कुशलता से प्रस्तुत करने के साथ ही लोकगीत, सुगम संगीत और फिल्म संगीत में इनके ढोलक वादन का जवाब नहीं है।