विशेष: देशराग
देशराग
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मेरी सूरत में तब्दीली बहुत है
अचानक आंख अब गीली बहुत है
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बुढापा आ गया है,आ रहा है
नहीं , सरकार ने पीली बहुत है
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अभी तक दौड़ कर चलते थे आगे
गुरु जी राह पथरीली बहुत है
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सुमरती रोज है भगवान को अब
अकेले जिंदगी जी ली बहुत है
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नहीं है सिर्फ आटा घर में गीला
हमारी दाल पंछीली बहुत है
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सियासत में डबल इंजन लगे हैं
इसी कारण से फुर्तीली बहुत है
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भले गंगा को धोया जा रहा है
बहुत बीमार है,पीली बहुत है
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