बिल्हौर\कानपुर। मेला मकनपुर में शुरुआती दौर में ही व्यवस्थाओं पर लगा प्रश्न चिंह।
इब्ने हसन ज़ैदी
बिल्हौर\कानपुर। उत्तर भारत में सबसे अहम माना जाने वाला मेला मकनपुर हजरत मदार के दर पर चादरपोशी के बाद शुरू हो गया मेले के इतिहास में क्या कुछ है। आइए डालते हैं एक नजर।
विश्वविख्यात सूफी हजरत जिंदा शाह मदार जब दुनिया से रुखसत हुए तो उनके मानने वालो का जमावड़ा मकनपुर में होने लगा जो धीरे धीरे मेले का रूप लेता चला गया। इसकी खासियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की मुगल शहजादा दारा शिकोह अपनी किताब सफीनातुल ओलिया में लिखता है की एक मेले के मौके पर मकनपुर में लगभग पांच लाख लोग इकट्ठा थे। ये दौर मुगलों का था लोग पैदल ही आते थे। लेकिन अब जबकि यातायात के बहुतायत साधन मौजूद हैं तो मेला अपनी पहचान खोता जा रहा है।
भारत के इस प्राचीन मेले का उद्घाटन 19 जनवरी को हो गया जिसमे पुलिस कमिश्नर और जिलाधिकारी कानपुर ने पहुंच कर परंपरागत रूप से दरगाह पर चादर पेश की प्रशासन की ओर से मेले की व्यवस्था को लेकर चाक चौबंद होने के दावे भी किए जा रहे हैं जिसमे साफ सफाई और ठहरने की व्यवस्था को प्रशासन सबसे अहम मान रहा है।
![]() |
गंदगी, मीरा रामपुर मुसाफ़िर खाने में ठहरी महिला |
मेला परिसर में सफाई का दावा इन तस्वीरों के आगे बौना दिखाई देता है। जाहिर है तस्वीरे झूठ नही बोलती। जिले के आला अधिकारियों को तस्वीर का ये रुख दिखाया ही नही गया।
बसंत पंचमी को लाखों लोग आने का दावा कर रहा प्रशासन उनके ठहरने को लेकर व्यवस्था को चुस्त बता रहा है.ये तस्वीरे मेला परिसर में इकलौते मुसाफिर खाने की हैं जहां अव्यवस्थाओं का बोलबाला दिखाई देता है...वहीं दूसरी तरफ सफेद हाथी बनी पानी की टंकी कितने पानी की आपूर्ति करेगी कह पाना मुश्किल है
मेले में लाखों की संख्या में पशु व्यापारी और जायरीन पहुंचते हैं। जिनकी सुरक्षा को लेकर प्रशासन कई तरह के दावे कर रहा है हालांकि उर्स के मौके पर बेहतर सुविधाएं प्रशासन ने मुहैया कराते हुए मेले का सफल आयोजन किया। जिसमे कई साल बाद कमिश्नर कानपुर की तरफ से ट्रैफिक जाम जैसी समस्या को काबू में करने की कोशिश की गई।
विशाखा जी अय्यर कानपुर जिलाधिकारी