विशेष। मित्रों के लिए, बुंदेली बतरस।
मित्रों के लिए
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उम्र का आखिरी पड़ाव सनम
कौन मूंछों पै देगा ताव सनम
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जिस्म अब हो चुका है मिट्टी का
याद रखता है कौन घाव सनम
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एक गिरती दिवाल जैसे हैं
हम भी खाते नहीं हैं भाव सनम
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वोट है पास कीमती लेकिन
किसको करना है अब चुनाव सनम
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राख का ढेर लग गया है बहुत
जल रहा है मगर अलाव सनम
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बेवजन तैरना नहीं मुश्किल
हम हैं कागज की एक नाव सनम
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राकेश अचल
बुंदेली बतरस
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नौना लग गओ दीवारन में ,कछू करौ
अम्मा बैठीं कोप भवन में,कछू करौ
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बंडा रीते डरे,भुसौरा रीत गये
काई पर गई है घैलन में,कछू करौ
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ऐसे दुरदिन देखें कभऊं न आंखन ने
सब तौ डूब गओ असुअन में,कछू करौ
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खेती हो गई है घाटे को सौदा अब
पीर बढ गई है घुटुअन में,कछू करौ
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भड़भड़ कर रये रोज कनस्तर आटे के
कब नौ काम चलै परथन में,कछू करौ
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सूनीं डरीं लिडौरीं ,चौंपे भूके हैं
कीरा पर गये चारऊ थन में,कछू करौ
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राकेश अचल
शब्दार्थ:: नौना/नमक,दीवारों/दीवारों,बंडा/अन्न भंडार,रीतेश/खाली हुए,भुसौरा/भूसा भंडार,काई/एल्गी,गैलन/मिट्टी के घड़े,दुरदिन/बुरे दिन,कभऊ/कभी,असुअन/आंसुओं,घुटुअन/घुटनों,परथन/रोटी की लोई बेलने में लगने वाला आटा,लिडौरी/पशुओं के खाने की जगह,चौंपे/पालतू पशु,कीरा/कीड़ा,चारु/चार थन/पशुओं के स्तन ।