जरा हटके।
जरा हटके
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उसने दाने दाने पर बस नाम लिखे
तुमने हर थैले पर क्यों पैगाम लिखे
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कारोबारी हो तुम पक्के बतलाओ
कितने पत्थर बेचे ,जै श्रीराम लिखे
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राजनीति कब कहती है नित रुप धरो
घूम रहे हो तुम क्यों यहां इमाम लिखे
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जितने किए नहीं है काम हुकूमत ने
उससे ज्यादा हर पत्थर पर काम लिखे
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कितना लूटोगे जनता को शर्म करो
हर लेबल पर दुगनै,तिगुने दाम लिखें
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खुशियां छीन, तबस्सुम तुमने लूट लिया
अब रूबाई, खाक उम्र खैयाम लिखे
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जी करता है ,हर नेता के चेहरे पर
ऊपर वाला केवल नमकहराम लिखे
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@ राकेश अचल