राकेश अचल का लेख। तो अब चहचाना मना है। भारत में अब ट्वीट करना आफत मोल लेने से कम नहीं है।
राकेश अचल का लेख। ट्वीट' करना यानि चहचहाना, चहचहाना एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है। ऊपर वाले ने वैसे ये प्रक्रिया पखेरुओं के लिए बनाई है लेकिन नकलची इंसान भी इसे करने में सिद्धहस्त है बल्कि उसने तो बाकायदा दिमाग का इस्तेमाल कर चहचहाने के लिए एक तकनीक भी विकसित कर ली और इसे कहा जाता है 'ट्विटर'' इस फोरम पर आप ख़ुशी-ख़ुशी चहचहा सकते हैं। लेकिन अब नहीं ,अब चहचहाना आपके लिए परेशानियां भी खड़ी कर सकता है। अब चहचहाना अपराध है।
ट्विटर का जन्म अमेरिका में हुआ ,लेकिन 2006 से पूरी दुनिया इसकी दीवानी है ,करोड़ों लोग इसका इस्तेमाल बेखटके करते हैं। राजा से लेकर रंक के पास ट्विटर नाम का हथियार है। लेकिन भारत में अब ट्वीट करना आफत मोल लेने से कम नहीं है। भाजपा के तेजेन्द्र सिंह बग्गा को इस तकनीक का इस्तेमाल करने का खमियाजा भुगतना पड रहा है। वे चहके तो दिल्ली में थे लेकिन पंजाब पुलिस ने उनके चहकने को अपराध माना और बग्गा को दिल्ली से ऐसे उठा ले गयी जैसे वे नामी-ग्रामी तस्कर हों।
दुनिया के बड़े -बड़े लोग आजकल बोलते नहीं है,लेकिन चहचहाते जरूर हैं। किसी महान व्यक्ति की एक चहचहाट के आते ही लाखों, करोड़ों लोग एक साथ चहचहाने लगते हैं। किसके पास कितने चहचहाने वाले हैं। ये पैमाना है लोकप्रियता का दुर्भाग्य ये है कि भारत में अब चहचहाना अपराध मान लिया गया है। अपराध भी गैर जमानती अपराध यानि कि पुलिस जब चाहे तब आपको उठाकर दाखिल हवालात कर सकती है। आप कभीं भी कहीं भी चहचहाएं लेकिन पकड़े कहीं भी जा सकते हैं। चहचहाने पर बग्गा साहब जैसे लोग पहली बार नहीं पकड़े गए लेकिन उनके पकड़े जाने पर हंगामा पहली बार हुआ। बग्गा से पहले गुजरात के जिग्नेश मेवानी साहब को असम की पुलिस पकड़कर ले गयी। उन्हें जैसे -तैसे एक मामले में जमानत मिली तो उनके ऊपर असम पुलिस ने एक दूसरा मामला लाद दिया। पुलिस के लिए मुकदमा लादना बाएं हाथ का काम है। दाएं हाथ से तो पुलिस अपने आकाओं को सेल्यूट बजाती है। लगातार चहचहाने वाले कविवर कुमार विश्वास को भी पंजाब पुलिस उठा ले जाती लेकिन शायद संकोच कर गयी या डर गयी ये सोचकर की कौन पूरी रात कुमार की अविश्वसनीय कविताओं को सुनेगा? बात मजाक की नहीं है लेकिन मै मजाक के मूड में हूँ इसलिए कहता हूँ कि ये पुलिस का इस्तेमाल सियासत में नई चीज नहीं है लेकिन अब ये खतरनाक लेबिल तक आ पहुंचा है। पुलिस का काम देशभक्ति और जनसेवा है किन्तु दुर्भाग्य से अब नेता भक्ति और नेता सेवा का काम लिया जा रहा है। पुलिस जनता की जानमाल की रक्षा और क़ानून और व्यवस्था को सम्हालने का काम भले न करे लेकिन नेताजी के एक इशारे पर उनके किसी भी दुश्मन को रातों रात बग्गा की तरह गिरफ्तार करने का काम अवश्य कर सकती है।
संघीय प्रणाली में दो और दो से अधिक राज्यों के बीच विवाद सनातन हैं लेकिन ये विवाद सीमा और नदियों के जल वितरण को लेकर हैं। ताजा विवाद क़ानून के इस्तेमाल को लेकर है सवाल किये जाने लगे हैं की क्या एक राज्य की पुलिस दुसरे राज्य में जाकर अपना जौहर दिखा सकती है ? पुलिस के पास अपराधियों के प्रत्यर्पण या गिरफ्तारी की विधि पहले से मौजूद है लेकिन अक्सर ये देखा गया है एक राज्य की पुलिस, दुसरे राज्य की पुलिस को कम ही सहयोग करती है,और यदि करती भी है तो प्रशासनिक स्तर पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर करती है ।और ये काम आज से नहीं बल्कि अंग्रजों के जमाने से होता आया है।
आजादी के 75 साल में हमने एक ही बड़ा काम किया है की अपनी पुलिस का आधुनिककरण नहीं होने दिया।अंग्रेजों ने जैसी क्रूर पुलिस दी थी हम वैसी ही क्रूर पुलिस के शेयर अपना काम चला रहे हैं । पुलिस को सुधरने और अधिक सक्षम बनाने के बजाय हमने उसे लगातार निकम्मा और गैर जबाबदेह बनाने का काम किया है।आजकल जैसे बग्गा या जिग्नेश को उठाया जा रहा है ठीक ऐसा ही हमारे सूबे मध्यप्रदेश में डकैतों की धरपकड़ के लिए किया जाता था ।पुलिस इसे हिकमत अमली कहती है ।अब यदि पुलिस किसी की गिरफ्तारी के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करती है तो उसे कभी भी उसका अपराधी मिलेगा ही नहीं ।इसका अर्थ ये नहीं की पुलिस क़ानून का पालन करे ही नहीं पुलिस को क़ानूओं की प्रकतिया का सामना करना चाहिए।
पुलिस के साथ विसंगति ये है की बेचारी करना कुछ चाहती है और हो कुछ जाता है। पुलिस सुधरना चाहती है लेकिन नेता उसे सुधरने नहीं देते। नेता बिगड़ी पुलिस को और बिगाड़ने का काम कर रहे है। मध्यप्रदेश में पुलिस की लापरवाही से एक युवक को बिना अपराध अपनी जिंदगी के 13 साल जेल में बिताने पड़े । अब अदालत ने उस युवक को मुआवजा देने के लिए सरकार को लिखा है ।बलात्कार के एक मामले में अभियुक्त की डीएनए रिपोर्ट बदलने के मामले में एक आला पुलिस अफसर को हटाने के लिए हाईकोर्ट को मेहनत करना पड़ी लेकिन सरकार ने अधिकारी को हटाने के बजाय सुप्रीम कोर्ट जाना ज्यादा आसान समझा।
लब्बो-लुआब ये है की पुलिस नेताओं के हाथों की कठपुतली बन गयी है। पुलिस क़ानून का राज स्थापित करने में मदद करने के बजाय नेताओं की मदद कर रही है। नेताओं के हाथों की खिलौना बनी पुलिस को गुलामी से मुक्ति दिलाने के साथ ही एक अभियान अभिव्यक्ति की स्वतत्रता की रक्षा के लिए भी चलाना चाहिए अन्यथा लोकतंत्र और शासन की संघीय प्रणाली खतरे में पड़ सकती है। भारतीय गणराज्य में विलीन की जा चुकी पुरानी रियासतों को आज पचहत्तर साल बाद स्वतंत्र रूप से काम करने की आजादी नहीं दी जा सकती।
पुलिस का इस्तेमाल यदि राजनितिक प्रतिशोध के लिए किया जाएगा तो लोकतंत्र बचेगा और न पुलिस। भारतीय पुलिस सेवा के लिए चुने जाने वाले प्रतिभाशाली पदाधिकारियों को इस संक्रमणकाल में अपनी रीढ़ की हड्डी होने का प्रदर्शन करना चाहिए। भापुसे के अफसरों को नेताओं की जी -हजूरी करने के बजाय झूठे प्रकरण कायम करने के साथ ही विरोधियों को निबटने के लिए नहीं करना चाहिए, लेकिन मोदी जी हैं तो मुमकिन है कि कभी न कभी ये हो जाये।भारत में राम राज की स्थापना से पहले क़ानून का राज स्थापित करने की जरूरत है ।जब तक क़ानून का राज स्थापित नहीं होगा तब तक पुलिस का दुरूपयोग होगा।
राकेश अचल (वरिष्ठ पत्रकार)
Initiate News Agency (INA)