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    राकेश अचल का लेख। भारत की ब्रांडिंग में भगवा

    राकेश अचल का लेख। जन्मजात हिन्दू हूँ,हिन्दू होने पर गर्व है, लेकिन उससे ज्यादा गर्व है हिन्दुस्तानी होने का और हिन्दुस्तान का प्रतीक है उसका राष्ट्र ध्वज तिरंगा। विदेश में बिना तिरंगे के भारत की कोई पहचान नहीं है।  हो भी नहीं सकती ,लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे मूर्धन्य प्रधानमंत्री विदेश में एक भगवा ध्वज को फहरा रहे ध्वज के साथ नृत्य करते लोगों के बीच ढोल बजा रहे हैं। 

    सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी जर्मनी पहुंचे थे, जहां बर्लिन में उनका जोरदार स्वागत हुआ। भारतीय समुदाय के लोगों ने पूरे उत्साह से प्रधानमंत्री  मोदी का स्वागत किया। इस दौरान कुछ लोग भगवा रंग के झंडे के साथ झूमते-गाते नजर आए। पीएमओ की ओर से इसी वीडियो को ट्विटर पर शेयर किया गया है। वीडियो के कैप्शन में लिखा है- 'ब्रांडेनबर्ग गेट पर भारत का फ्लेवर, एक नजर देखिए…'

    भगवा देखकर प्रधानमंत्री का प्रमुदित होना स्वाभाविक है। लेकिन बेहतर होता की वे यहां तिरंगे की मांग करते ,लेकिन तिरंगा उनके एजेंडे का हिस्सा ही नहीं है शायद इसीलिए वे जानबूझकर तिरंगे की अनुपस्थिति की अनदेखी कर रहे हैं। भारत की आजादी के स्वर्णजयंती वर्ष में विदेश में तिरंगे के बजाय भगवा ध्वज के साथ मगन प्रधानमंत्री को देखकर अंधभक्तों का सर गर्वोन्नत हो सकता है लेकिन आम भारतीय का नहीं। क्योंकि भारतीय अस्मिता तिरंगे से जुड़ी है न कि भगवे से, आजादी तिरंगे के साथ हासिल की गयी है न की किसी भगवा ध्वज को साथ लेकर। 

    भारत में हर मुद्दे पर घिरे  प्रधानमंत्री एक नया शिगूफा छोड़कर अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं और उसमें कामयाब भी हो जाते हैं। अब पूरा विपक्ष जर्मनी में भारत के भगवाकरण को लेकर आक्रामक हो रहा है लेकिन प्रधानमंत्री जी को कोई चिंता नहीं है। उन्हें विपक्ष क्या किसी को भी इस बारे में जबाब देना ही नहीं है। उनकी और से जबाब भाजपा और आरएसएस की फ़ौज देगी। अंधभक्तों की टोली देगी और स्वाभाविक है कि प्रधानमंत्री जी के समर्थन में बोलेगी। 

    दुःख की बात ये है कि भगवा ध्वज वाला वीडियो प्रधानमंत्री जी के आधिकारिक ट्वविटर हैंडिल पर प्रदर्शित किया गया है। भारत का संस्कृति मंत्रालय इस पर जय-जय कर रहा है। कांग्रेस के अलावा इरफ़ान हबीब जैसे देश के इतिहासकार सवाल कर रहे हैं लेकिन जबाब किसी के पास नहीं है। मैंने अपने जीवन में ऐसे दृश्य कभी नहीं देखे।  जाहिर है कि इस पूरे प्रहसन के पीछे भाजपा और संघ मंडली का ही हाथ होगा,वरना दुनिया के किसी भी हिस्से में किसी भी भारतीय की इतनी हिम्मत नहीं है कि वो तिरंगे को छोड़ कोई और ध्वज का इस्तेमाल करे। हाल ही में रूस -यूक्रेन युद्ध के दौरान भी भारतीय छात्रों को अपनी पहचान के लिए तिरंगे का ही इस्तेमाल करना पड़ा ठान कि भगवे का। 

    पिछले साल मै अमेरिका में था,वहां भी मोदी समर्थकों की नेत्रविहीन टीम इसी तरह की कोशिशें लगातार कर रही है। अमेरिका में भी संघ अपना एजेंडा चला रहा है। अमेरिका में हिंदी के लिए काम कर रहे मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि उनकी संस्थाओं को संचालित करने वाला एक संघी है सो उसे कोई प्रगतिशील बात पसंद ही नहीं है। उसे हर मंच से मोदीगान करना और कराना पसंद है। यानि अब वहां राष्ट्र्गान से ज्यादा मोदी गान ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। 

    पिछले पांच दशकों से तो मै भारतीय प्रधानमंत्रियों की विदेश यात्राएं देख रहा हूँ। पहले तो हमारे राष्ट्रपतियों को भी विदेश यात्रा का मौक़ा मिलता रहता था लेकिन जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं तब से बेचारे राष्ट्रपति विदेश जाने को तरस गए हैं। दुनिया को पता ही नहीं है कि भारत में राष्ट्रपति नाम की भी कोई चिड़िया होती है। एक तरह से खुद ही सारी विदेश यात्राएं कर मोदी जी देश का खर्च ही बचा रहे हैं। उनके साथ न विदेश मंत्री होते हैं और न दूसरे मंत्री,न कोई प्रतिनिधि मंडल होता है न भारतीय प्रेस, वे सब कुछ है। देश के बाहर भी और देश के भीतर भी .आप प्रधानमंत्री जी को 'थ्री इन वन' कह सकते हैं। 

    बहरहाल मेरा मकसद अपने प्रधानमंत्री की निंदा या प्रशंसा करना नहीं है। मेरा मकसद विदेश में तिरंगे की अवमानना का विरोध करना  है। हर भारतीय को चाहे वो भक्त हो या न हो इस मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद करना चाहिए। इस मुद्दे पर मौन का अर्थ होगा कि आप भारत के साथ नहीं बल्कि एक ऐसे अभियान के साथ हैं जिसका भारतीयता से कोई सीधा रिश्ता नहीं है. न आजादी के संघर्ष में था और न आज भारत के नवनिर्माण में है। आज का अभियान   भारत के नवरत्नों को ही नहीं बाक़ी की विरासतों  को बेचने का है। हाल ही में चुपचाप पवनहंस भी बिक गया,एयर इंडिया तो धूमधाम से बिका ही था। 

    मोदी अपनी जर्मनी कि यात्रा के बाद लौट आएंगे,कोई उनसे नहीं पूछने वाला कि इस यात्रा से भारत को क्या लाभ हुआ ? प्रेस पूछ नहीं सकती,प्रेस को वे साथ ले ही नहीं जाते। राष्ट्रपति को वे कुछ बताते नहीं है और संसद हाल-फिलहाल स्थगित चल रही है। विपक्ष को प्रधानमंत्री जबाब देते नहीं है वे सबके साथ चलकर भी अकेले चलते हैं। सबका विकास करके भी केवल संघ के एजेंडे का विकास करते हैं। इसमें बुराई नहीं है ,बुराई है तो सिर्फ इतनी कि वे देश और विदेश में लगातार भारतीय अस्मिता के प्रतीक चिन्हों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। ये काम उनकी पार्टी करे तो समझा जा सकता है कि मामला राजनीतिक है लेकिन जब वे खुद ऐसा करते हैं और ऐसा करते हुए खुश होते हैं तो लगता है कि सब गुड़-गोबर हो रहा है। 

    यहां गोस्वामी तुलसीदास याद आते हैं वे कहते हैं कि होनहार को कोई नहीं रोक सकता .अर्थात -

    ' 'तुलसी' जस भवितव्यता, तैसी मिलै सहाय। 

    आपु न आवै ताहि पै, ताहि तहाँ लै जाय॥.'

    कुल मिलाकर जो हो रहा है ,सो हो रहा है। उसे न इस देश की जनता रोक पा रही है और न विपक्ष। इसलिए अब खामोश होकर 'तेल देखिये और तेल की धार' देखिये ,अगर घर में या आसपास कोई ऊँट है तो उसकी करवट देखिये। मूकदर्शक होना ही जब आपकी नियति हो तो जय श्रीराम, तिरंगे को गंगा में बहा दीजिये और पीएमओ पर भगवा लहरा दीजिये ,कोई रोकने वाला नहीं है सर ! 

    राकेश अचल(वरिष्ठ पत्रकार)

    Initiate News Agency (INA)

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