देवबंद। हराम कमाई से रोजे की सहरी और इफ्तार करना जायज नहीं: नदीमउल वाजदी
देवबंद। अरबी के प्रसिद्ध विद्वान मौलाना नदीमुलवाजदी का कहना है कि हराम कमाई से रोजे के लिए सहरी करना और उसी कमाई से इफ्तार करना जायज नहीं। अल्लाह को ऐसे रोजे की जरुरत नहीं है। पवित्र रमजान माह में हलाल कमाई को जायज जगहों पर खर्च करना भी रोजे का एक अहम हिस्सा है।
रमजान का महीना कितनी अहमियत रखता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की माह में तमाम बुराईयों को त्यागने, दूसरों को तकलीफ न पहुंचाने और हलाल कमाई का इस्तेमाल करने का हुक्म शरीयत में दिया गया है। मौलाना नदीमुलवाजदी ने शरीयत के हवाले से बताया कि रोजे का मकसद खाने पीने की चीजों को छोडना नहीं बल्कि हर गलत काम व गुनाहों की चीजों को त्यागना है। झूठ न बोलना, गिबत न करना, दूसरों को तकलीफ पहुंचाने वाली बातों को न करना, हराम कमाई को छोड़कर जायज तरीके से कमाई करना और उस कमाई को जायज जगहों पर खर्च करना रोजे का एक अहम हिस्सा है। कहा कि अगर कोई शख्स रोजा रखकर हराम माल (पैसे) से सहरी व इफ्तार करता है तो उस पर हुजूर ने फरमाया है कि अल्लाह ताआला को ऐसे रोजे की जरुरत नहीं है। इसलिए हुजूर ने फरमाया हलाल माल से रोजा रखो और उसी से इफ्तार करो। उन्होंने कहा कि रमजान में मुसलमानों को पांचों वक्त की नमाज की पाबंदी करनी चाहिए और नफली इबादतों में वक्त लगाना चाहिए। इसके अलावा जकात अदा करने के साथ ही ज्यादा से ज्यादा नफली सदका देना भी सवाब का काम है।
शिबली इकबाल
Initiate News Agency (INA), देवबंद