अयोध्या। प्राइमरी स्कूल जहां से पढ़े छात्र वैज्ञानिक, समाजसेवी, राजनीतिज्ञ, इंजीनियर, प्रशासन, डाक्टर बनें
................... आज उसी प्राइमरी स्कूल में छात्रों की कमी, लोग प्रायवेट की तरफ भाग रहे हैं?
.................. कौन है असली जिम्मेदार, कैसे सुधरेगी प्रायमरी स्कूल की व्यवस्था
अयोध्या। आज से चार दशक पहले की स्थिति पर नजर डालें तो प्राइमरी स्कूल में ही लोग अपने बच्चों का दाखिला कराते थे और वहां से पढ़कर छात्र डॉक्टर इंजीनियर, वैज्ञानिक, प्रशासक राजनेता प्रशासनिक अधिकारी समाजसेवी आदि तमाम निकलकर देश-विदेश में अपना नाम और देश का नाम रोशन करते थे। आज देखा जा रहा है कि लोग अपने बच्चों का दाखिला प्राइमरी स्कूल में नहीं कराना चाहते हैं। बल्कि अधिक फीस देकर प्रायवेट स्कूलों में कराते हैं।
प्रदेश में निःस्वार्थ भाव से समाज को प्राथमिक शिक्षा बांटता हुआ प्राइमरी स्कूल गांवों, कस्बों या शहरों में मौजूद हैं किंतु अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। आखिर कौन है इसके लिए जिम्मेदार और क्यों नहीं सुधर रही है प्राइमरी स्कूल की व्यवस्था। बच्चों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। लोग अपने बच्चों को सरकारी प्राइमरी स्कूल में दाखिला नहीं कराना चाहते हैं।कई दशक पुराना प्राइमरी स्कूल गांव में बसा होने के बावजूद गांव से ही अलग-थलग पड़कर अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। आज के बदलते माहौल ने उसके नेक इरादों पर पानी फेर दिया है।
यह वही प्राइमरी स्कूल है जिसने बीते समय में समाज को वैज्ञानिक, क्रान्तिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासक और राजनीतिज्ञ तक सौपें हैं। आज प्राइमरी स्कूल शिक्षकों की कमी, मिड ड़े मील की अव्यवस्था, बच्चों की गिरती संख्या, सरकारी नीतियां शासन सत्ता एवं समाज के गैर जिम्मेदाराना रवैया की वजह से बदहाल हैं। प्राइमरी स्कूलों में कहीं बच्चे हैं तो मूलभूत सुविधाएं नहीं, कहीं सुविधाएं है तो बच्चे नहीं। वर्तमान में कक्षा 1 से 8 तक सभी बालक/बालिकाओं के लिए निःशुल्क पाठ्य- पुस्तक, मध्याह्न पोषाहार और छात्रवृत्ति की अधिकाधिक व्यवस्था है। विद्यालय को लेकर तरह-तरह के अन्य मानक भी बनाए गए है। प्राथमिक विद्यालय की स्थापना हेतु तकरीबन 1 किमी तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थापना हेतु 2 किमी की अनुमानित दूरी निर्धारित की गई है। इतना ही नहीं, सरकार का करोड़ों का बजट प्रतिवर्ष प्राथमिक शिक्षा हेतु व्यय किया जाता है। फिर भी आज ऐसी हालत क्यूं है?
आज से 50 वर्ष पूर्व समाज के अधिकतर लोग इन्हीं प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते थे, आगे बढ़ते थे और अलग-अलग क्षेत्रों में पहुंच कर परिवार एवं समाज का नाम रोशन करते थे। तब प्राथमिक विद्यालयों में तख्ती पर लिखा जाता था। कालीख लगाई जाती थी। सफेद जूही से लिखा जाता था। लाइन बनाई जाती थी चिकल्ला से और सीसी उसे रगड़ कर चमकाया जाता था। सेठा की कलम से लिखा जाता था। उस समय शिक्षा प्राथमिक विद्यालय की अच्छी थी। गोला बनाकर बच्चों को बैठाकर गिनती, पहाड़ा, आध्धा, पौवा, सवैया आदि याद कराया जाता था। इमला बोला जाता था। गलती होने पर अध्यापक बच्चों को दंडित करते थे। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए खेलकूद की अच्छी व्यवस्था होती थी। कबड्डी लेजिम कुश्ती आदि खेल होते थे। जो आज विलुप्त होते जा रहे हैं।स्कूल आज भी वही हैं, इनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों के चयन का मानक शायद बदल गया है, मूलभूत सुविधाएं अधिक है, प्राथमिक विद्यालय की संख्या तब से कई गुना आज ज्यादा है। यहां तक कि आज तकरीबन प्रत्येक कस्बों में प्राइमरी स्कूल मिल ही जाएंगे। परन्तु अहम सवाल यह है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद भी प्राइमरी स्कूलों की हालत दिन-प्रतिदिन क्यूं बिगड़ती जा रही है?
बदलते परिवेश में आज समाज का अधिकतर बच्चा प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहा है, इसके विपरीत कुछ गिने-चुने सामाजिक दबे-कुचले गरीब लोगों के ही बच्चे आज प्राइमरी स्कूलों में आ रहे हैं। प्राइमरी स्कूलों के अभिभावकों का अधिकांश तबका गैर-जागरूकता के साथ-साथ गरीबी से जूझ रहा है। पहले प्राइमरी स्कूलों में शुद्ध दुग्ध रूपी छात्र आते थे, जिनसे घी, मक्खन, दही, मट्ठा डॉक्टर, इंजी, नौकरशाह सब बनाए जाते थे। सरकार प्राइमरी स्कूलों में निशुल्क शिक्षा ड्रेस कॉपीकिताब आज सब प्रदान कर रही है मिड डे के तहत खाने की भी व्यवस्था किया है फिर भी प्राइमरी स्कूलों की दशा क्यों नहीं सुधर रही है क्या कभी सरकार और प्रशासन ने इस तरफ सोचा है कि आखिर कारण क्या है। प्राइवेट स्कूलों में अध्यापकों को कम पैसे देकर अच्छी शिक्षा दिला रहे हैं। क्या उस तर्ज पर सरकारी स्कूल नहीं चलाये जा सकते हैं?
आज शिक्षा का व्यवसायीकरण करके समाज के मध्यम एवं उच्च तबकों के लिए कई प्रकार के विकल्प तैयार कर दिए। सुविधा सम्पन्न घरानों के बच्चे बड़ी-बड़ी अकादमियों, पब्लिक स्कूलों और प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने लगे।अत्याधुनिकता भरे दौड़-भाग वाले दौर में स्वकेन्द्रित समाज आज कस्बों की इन प्राइमरी स्कूलों की तरफ देखना भी नहीं चाहता है। उसका एक वजह यह भी है की प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने वाले अध्यापक भी अपने बच्चों का दाखिला प्राइमरी स्कूल में नहीं कराते हैं। अधिकारी कर्मचारी नेता के बच्चे भी प्राइमरी स्कूल में अपने बच्चों का दाखिला नहीं कराना चाहते हैं। जिससे प्राइमरी स्कूल की हालत दिन-प्रतिदिन और बिगड़ती जा रही है।
शिक्षक भी देर से विद्यालय आना, जल्दी जाना और कई बार तो बिना छुट्टी ही विद्यालय से नदारद रहना है।
शिक्षा का व्यवसायीकरण होना। समाज का प्राइमरी स्कूलों से अंकुश हटना। वर्तमान में समाज के निम्न वर्ग के बच्चों का प्राइमरी स्कूलों में जाना। प्राइमरी स्कूलों और शिक्षकों पर तंत्र का लगाम लचीला होना। समाज के अधिकतर लोगों की सोच का स्वकेन्द्रित होना। भ्रष्टाचार के चलते नीतियों का ठीक ढ़ंग से जमीनी स्तर पर संचालन न होना। बदलते आधुनिक जमाने के मुताबिक प्राइमरी स्कूलों और उससे जुड़ी नीतियों में सकारात्मक बदलाव न होना। बेहतरीकरण में जन-जन की सहभागिता अति आवश्यक है। सरकार भी गली-मोहल्ले में थोक के भाव चल रहे प्राइवेट स्कूलों को तय मानक के मुताबिक न होने पर उनकी मान्यता रद्द करें और उन पर नकेल कसे।
जब तक माहौल ऐसा नहीं बनेगा की सभी वर्ग के लोगों को बच्चे समाज के प्रत्येक तबके के बच्चे प्राइमरी स्कूलों में विद्यार्जन करना ज्यादा पसन्द करें। प्राइमरी स्कूलों को अत्याधुनिक बनाने पर बल दिया जाए।, प्रायवेट स्कूलों के तर्ज पर प्राइमरी अंग्रेजी माध्यम स्कूल भी खोले जाए। प्राइमरी स्कूल में योग्य और अच्छे अध्यापक की भर्ती किया जाए अध्यापकों की संख्या बढ़ाई जाए भले ही कम पैसे देकर ज्यादा अध्यापक रखे जाएं। ज्यादा वेतन देकर 12 अध्यापक से काम चलाने से अच्छा एक अध्यापक के वेतन में 4 अध्यापक को रखा जाए जिससे एमए,बीएड, टीटी पास शिक्षकों को भी नौकरी का अवसर मिल जाए। आज समाज में जिस तरह से बेरोजगारी फैली है किसी को 50,हजार, 70हजार वेतन मिल रहा है और किसी को 10हजार भी मिलना मुश्किल लग रहा है। ऐसे में यदि 60हजार वेतन पाने वाले अध्यापक की जगह 15-15 हजार वेतन देकर 4 अध्यापक रखे जाएं तो शायद अध्यापकों की संख्या पूरी हो जाएगी और तभी बच्चों की संख्या भी बढ़ेगी। जब तक प्राइमरी स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ने के उपाय शासन प्रशासन और जनता द्वारा नहीं किया जाएगा तब तक प्राइमरी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो पाना संभव नहीं है। बदलते परिवेश में प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर कम पैसे पर ज्यादा अध्यापक सरकारी स्कूलों में रखकर बेहतर शिक्षा दिया जा सकता है।
देव बक्श वर्मा
Initiate News Agency (INA), अयोध्या