धान के अपशिष्टसे सिलिका अलग करने की नयी तकनीक
धान के अपशिष्टसे सिलिका अलग करने की नयी तकनीक नई दिल्ली (इंडिया साइंस वायर). धान से चावल अलग करने के दौरान उत्पन्नभूसी व्यापक रूप से उपलब्ध कृषि अपशिष्टों में से एक है। धान से चावल कोअलगकरने से पहले इसका जलतापीय (Hydrothermal) उपचार किया जाता है। इस दौरान ईँधन के रूप में जलायीजानेवालीधान कीभूसीकीराखपर्यावरणकेलिए काफीहानिकारकहोतीहै। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने धान की भूसी को जलाने सेपैदा हुई राख जैसे जैविक अपशिष्ट के निपटारे के लिए एक ईको-फ्रेंडली और किफायती पद्धति विकसितकी है। इस पद्धति की मदद से धान की भूसी की राख से सिलिका नैनो कण अलग किए जा सकते हैं, जिनका उद्योग-धंधोंमें व्यावसायिक उपयोगहो सकता है। यह पद्धति आईआईटी, खड़गपुर के डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल ऐंड फूड इंजीनियरिंग के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई है। इसे विकसित करने वाले शोधकर्ताओं ने बताया कि धान की भूसी की राख में 95 प्रतिशत तक सिलिका तत्व होता है, जिसे अलग करने के बाद बचे हुए अपशिष्ट को जलस्रोतों में सुरक्षित रूप से प्रवाहित किया जा सकता है। इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर ए.के. दत्ता ने बताया कि “इस तरह प्राप्त सिलिका का व्यावसायिक उपयोग भी किया जा सकता है। इसका उपयोग मुख्य रूप से धातुओं के शोधन और सोलर सिलिकॉन बनाने में किया जा सकता है।”
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विभिन्न
रासायनिक प्रक्रियाओं से प्राप्त सिलिका |
प्रोफेसर दत्ता ने बताया कि "इस अध्ययन के परिणामों से स्पष्ट हुआ है कि धान के अपशिष्ट से निकाले गए सिलिका नैनो कणों की रूप एवं सूक्ष्म-संरचना संबंधी विशेषताएं बाजार में उपलब्ध सिलिका के जैसी ही हैं।"
शोधकर्ताओं ने धान की भूसी की राख से प्राप्त सिलिका नमूनों के उपचार का लागत विश्लेषण भी किया है। उन्होंने पाया कि धान की भूसी की राख से प्राप्त सिलिका नैनो कण मैग्नीशियम सिलिकेट के लिए उपयुक्त एवं किफायती तत्व हो सकते हैं।
(इंडिया साइंस वायर)