प्रस्तावित राम मंदिर में 'श्री राम जन्म भूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट 'राम राज्य के समय प्रचलित श्रेष्ठ प्रथाओं और पूजा पद्दीती को भी प्रचलित रखे
प्रस्तावित राम मंदिर में 'श्री राम जन्म भूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट 'राम राज्य के समय प्रचलित श्रेष्ठ प्रथाओं और पूजा पद्दीती को भी प्रचलित रखे
आगरा.
ब्राह्मण समाज आगरा अयोध्या में राम मंदिर बनाये जाने के कार्य का स्वागत करता है और इसे पांच सौ सालों पूर्व सांप्रदायिक वैमनस्यता के आधार पर हिन्दू स्वाभिमान को पहुँची चोट को पूरा करने वाला कार्य मानता है।
समाज मानता है कि राम जन्म भूमि मंदिर का ताला भी न्यायिक आदेश से खुला था और राम जन्म भूमि मंदिर के निर्माण का काम भी न्यायिक आदेश के आधार पर ही शुरू हुआ है। जब ताला खुला था तब स्व.राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और अब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं इस लिये कोई राजनैतिक दल या नेता कुछ भी कहते रहें या दावा करते रहें द्विज न्यायपालिका के कृतज्ञ हैं. जिसने निष्पक्षता से अपने दायित्व का निर्वाहन किया।
अब 'श्री राम जन्म भूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ' का गठन विधिवत हो गया है और इसके अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास जी के नेतृत्व में मुख्य मंदिर के निर्माण का कार्य भी शीघ्र शुरू हो जायेगा। न्यायपालिका ने ट्रस्ट से केवल मंदिर निर्माण की ही अपेक्षा की थी जबकि सरकार को समूचे अयोध्या क्षेत्र के विकास के काम में ट्रस्ट से सहयोग अपेक्षित है। ब्राह्मण समाज चाहता है कि राम राज्य के समय प्रचलित श्रेष्ठ प्रथाओं और पूजा पद्दीती को भी प्रचलित रखना भी ट्रस्ट अपनी भूमिका मे शामिल करे।
हिन्दू समाज खासकर ब्राह्मण चाहते हैं कि समूचे अयोध्या (श्री राम जन्म भूमि तीर्थक्षेत्र ) न सही कम से कम राम लला की प्रतिमा सुशोभित मुख्य मंदिर में पूजा अर्चना करने वाले हिंदुओं को अनिवार्य नहीं तो कम से कम प्रेरित किया जाये कि अगर वे विवाहित है तो अपनी पत्नी को भी जरूर साथ लायें। राम राज्य में महिलाओं के सम्मान की सूचक यह व्यवस्था एक विशिष्टता थी। राजा होने के बावजूद स्वयं राम ने भी इसका पालन करने के लिये, पालन करते हुए सीता जी की सोने की प्रतिमा बनवानी पडी थी।
ब्राह्रमणों की भूमिका बदलने के समय समय पर प्रयास होते रहे है किन्तु वे समाज को दिशा और शिक्षा देने के अपने मूलय दायित्व से कभी भी विमुख नहीं हुऐ । यही कारण हे कि इस समय भी हमें बोलना पड रहा है। संग्लांक बहुत महत्वपूर्ण जानकारी के साथ पत्नी और विवाह संस्था के विकास की जानकारी देते हैं.
प्रेस वार्ता में भुवनेश श्रोतिया, बी.के शर्मा, कपिल वाजपेई, डॉ शिल्पा दीक्षित, सुनीत गोस्वामी, अजय शर्मा, जितेन्द्र शर्मा, नवीन शर्मा, अपूर्व शर्मा , अनिल शर्मा आदि उपस्थित थे।
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(अगर विवाहित हैं तो, पत्नी का लाना अनिवार्य हो)
हिन्दू विवाह के समय जो सात फेरे लेते हैं उनमे पहला वचन धार्मिक और सामाजिक कार्यों में सहभागी बनाने संबधी ही होता है।
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तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!
(यहाँ कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
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महिलाओं का सम्मान और उनकी भूमिका व गारिमा बढाने वाली यह शासन सम्मत प्रथा है। इसी लिये हमारा इसे लेकर अनुरोध है।
(राम के राज में प्रचलित रही एक पति एक पत्नी प्रथा प्रचरित रहे)
परिवार के गठन, और हिन्दू समाज की सामाजिक संरचना की जानकारी रखने वालों के अलावा बहुत ही कम को जानकारी होगी कि हिन्दू परिवारों में महिलाओं का सम्मान सही रूप में श्वेतकेतु ऋषि द्वारा 'एक पति की एक पत्नी, एक पत्नी का एक पति ' नियम बनाने के साथ शुरू हुआ। नैसर्गिक और नैतिकता आधारित होने के बावजूद इसे लेकर नकारात्मक प्रयास होते रहे किन्तु अंतत: मौजूदा कानून भी वैदिक कालीन इस रिफार्म को स्वीकार करते हैं।
श्वेतकेतु एक तत्वज्ञानी आचार्य थे, जिनका उल्लेख शतपथ ब्राह्मण, छान्दोग्य, बृहदारण्यक आदि उपनिषदों में मिलता है। उनकी कथा कौशीतकि उपनिषद में मूलत: आती है।हिन्दुओं में प्रचलित विवाह पद्धति, एक पति और एक पत्नी प्रथा को शुरू करवाने मे इनकी ही पहल वह आधार रही जिसके फलस्वरूप हिन्दू धर्म ही नहीं इससे निकले उप धर्म, अन्य अनेक धर्मों मे भी समाज की मूल इकाई परिवार और दाम्पत्य को नैतिक आधार और बल मिला।
परिचय...
'कौशीतकि ' उपनिषद के अनुसार श्वेतकेतु ऋषि, गौतम ऋषि के वंशज और आरुणि के पुत्र थे। छांदोग्य में उनको उद्दालक आरुणि का पुत्र बताया गया है। ये पांचाल देश के निवासी थे और विदेहराज जनक की सभा में भी गए थे। अद्वैत वेदांत के महावाक्य 'तत्वमसि' का, जिसका उल्लेख छांदोग्य उपनिषद में है, उपदेश इन्हें अपने पिता से मिला था। इसके एक प्रश्न के उत्तर में पिता ने कहा था- "तुम एवं इस सृष्टि की सारी चराचर वस्तुएँ एक है एवं इन सारी वस्तुओं का तू ही है (तत्त्वमसि)।" इन्होंने एक बार ब्राह्मणों के साथ दुर्व्यवहार किया, जिससे इनके पिता ने इनका परित्याग कर दिया था। इनका विवाह देवल श्रषि की कन्या सुवर्चला के साथ हुआ था और अष्टावक्र इनके मामा थे।
समाज सुधारक...
श्वेतकेतु का समय पाणिनी से पहले का माना जाता है। शास्त्रों के जनकार उन्हें हिंदुओं में व्याप्त कुरीतियों को खत्म कर समाज और राज्य व्यवस्था को सुधारने वाले प्रभावी कदम उठाने में सक्षम प्रथम समाज सुधारक के रूप में मानते हैं.। समाज कल्याण की दृष्टि से इन्होंने अनेक नियमों की स्थापना की।
महाभारत में आए एक उल्लेख के अनुसार एक ब्राह्मण ने इनकी माता का हरण कर लिया था। इसी पर श्वेतेकेतु ने पुरुषों के लिए एक पत्नी व्रत और महिलाओं के लिए पतिव्रत का नियम बनाया । उन्होंने यह मान्यता स्थापित कि, परस्त्री गमन पर रोक लगाई। इन्होंने यह नियम प्रचारित किया कि पति को छोड़कर पर पुरुष के पास जाने वाली स्त्री तथा अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री से संबंध कर लेने वाला पुरुष दोनों ही भ्रूण हत्या के अपराधी माने जाएँ।
श्वेतकेतु की कथा महाभारत के आदिपर्व में है और उनके द्वारा प्रचारित यह नियम धर्म शास्त्र में अब तक मान्य है। एक बार अतिथि सत्कार में उद्दालक ने अपनी पत्नी को भी अर्पित कर दिया। इस दूषित प्रथा का विरोध श्वेतकेतु ने किया। इस प्रकार यह प्रथा श्वेतकेतु ने बन्द करवायी।
(।- पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम:भारतीय चरित कोश,लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय')
भारतीय परंपरा में स्त्री पुरुष के पवित्र विवाह बंधन में विवाह सूक्त की रचना सूर्य-सावित्रि से हुई है ! विवाह अवसर पर पुरुष द्वारा स्त्री को प्रदान किये जाने वाले सात वचन और मंत्रोचारण की रचना हो जाने पर भी विवाह सम्बन्ध में अधिक संवेदनशीलता और पवित्रता के साथ साथ शुचिता को जोड़ा जाना अभी शेष था
(विवाह सूक्त)...
विवाह सूक्त - ऋग्वेद संहिता के दशम मंडल के 85वें सूक्त को विवाहसूक्त नाम से जाना जाता है। वैसे अथर्ववेद में भी विवाह के दो सूक्त हैं। इस सूक्त में सूर्य की पुत्री 'सूर्या तथा सोम के विवाह का वर्णन है। अशिवनी कुमार इस विवाह में सहयोगी का कार्य करते हैं। यहां स्त्री के कर्तव्यों का विस्तार से वर्णन है। उसे सास-ससुर की सेवा करने का उपदेश दिया गया है। परिवार का हित करना उसका कर्तव्य है। साथ ही स्त्री को गृहस्वामिनी, गृह पत्नी और 'साम्राज्ञी' कहा गया है। अत: स्त्री को परिवार में आदरणीय बताया गया है।
विवाह संबंधी नियम और व्यवस्था कई और हिन्दू धर्मग्रंथों में भी हैं किन्तु ऋग्वेद संहिता के विवाह सूक्त ही इनके मूल में हैं।
हिंदू विवाह अधिनियम १९५५(एक्ट नं.25) में सामायिक व्यवस्था के अनुरूप विवाह संबंधी परंपरागत परिवर्तन तो हुए किन्तु विवाह या परिवार संस्था को मजबूती ही मिली।
विजय लक्ष्मी सिंह
एडिटर इन चीफ
आईएनए न्यूज़ एजेंसी
आगरा.
ब्राह्मण समाज आगरा अयोध्या में राम मंदिर बनाये जाने के कार्य का स्वागत करता है और इसे पांच सौ सालों पूर्व सांप्रदायिक वैमनस्यता के आधार पर हिन्दू स्वाभिमान को पहुँची चोट को पूरा करने वाला कार्य मानता है।
समाज मानता है कि राम जन्म भूमि मंदिर का ताला भी न्यायिक आदेश से खुला था और राम जन्म भूमि मंदिर के निर्माण का काम भी न्यायिक आदेश के आधार पर ही शुरू हुआ है। जब ताला खुला था तब स्व.राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और अब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं इस लिये कोई राजनैतिक दल या नेता कुछ भी कहते रहें या दावा करते रहें द्विज न्यायपालिका के कृतज्ञ हैं. जिसने निष्पक्षता से अपने दायित्व का निर्वाहन किया।
अब 'श्री राम जन्म भूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ' का गठन विधिवत हो गया है और इसके अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास जी के नेतृत्व में मुख्य मंदिर के निर्माण का कार्य भी शीघ्र शुरू हो जायेगा। न्यायपालिका ने ट्रस्ट से केवल मंदिर निर्माण की ही अपेक्षा की थी जबकि सरकार को समूचे अयोध्या क्षेत्र के विकास के काम में ट्रस्ट से सहयोग अपेक्षित है। ब्राह्मण समाज चाहता है कि राम राज्य के समय प्रचलित श्रेष्ठ प्रथाओं और पूजा पद्दीती को भी प्रचलित रखना भी ट्रस्ट अपनी भूमिका मे शामिल करे।
हिन्दू समाज खासकर ब्राह्मण चाहते हैं कि समूचे अयोध्या (श्री राम जन्म भूमि तीर्थक्षेत्र ) न सही कम से कम राम लला की प्रतिमा सुशोभित मुख्य मंदिर में पूजा अर्चना करने वाले हिंदुओं को अनिवार्य नहीं तो कम से कम प्रेरित किया जाये कि अगर वे विवाहित है तो अपनी पत्नी को भी जरूर साथ लायें। राम राज्य में महिलाओं के सम्मान की सूचक यह व्यवस्था एक विशिष्टता थी। राजा होने के बावजूद स्वयं राम ने भी इसका पालन करने के लिये, पालन करते हुए सीता जी की सोने की प्रतिमा बनवानी पडी थी।
ब्राह्रमणों की भूमिका बदलने के समय समय पर प्रयास होते रहे है किन्तु वे समाज को दिशा और शिक्षा देने के अपने मूलय दायित्व से कभी भी विमुख नहीं हुऐ । यही कारण हे कि इस समय भी हमें बोलना पड रहा है। संग्लांक बहुत महत्वपूर्ण जानकारी के साथ पत्नी और विवाह संस्था के विकास की जानकारी देते हैं.
प्रेस वार्ता में भुवनेश श्रोतिया, बी.के शर्मा, कपिल वाजपेई, डॉ शिल्पा दीक्षित, सुनीत गोस्वामी, अजय शर्मा, जितेन्द्र शर्मा, नवीन शर्मा, अपूर्व शर्मा , अनिल शर्मा आदि उपस्थित थे।
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(अगर विवाहित हैं तो, पत्नी का लाना अनिवार्य हो)
हिन्दू विवाह के समय जो सात फेरे लेते हैं उनमे पहला वचन धार्मिक और सामाजिक कार्यों में सहभागी बनाने संबधी ही होता है।
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तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!
(यहाँ कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
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महिलाओं का सम्मान और उनकी भूमिका व गारिमा बढाने वाली यह शासन सम्मत प्रथा है। इसी लिये हमारा इसे लेकर अनुरोध है।
(राम के राज में प्रचलित रही एक पति एक पत्नी प्रथा प्रचरित रहे)
परिवार के गठन, और हिन्दू समाज की सामाजिक संरचना की जानकारी रखने वालों के अलावा बहुत ही कम को जानकारी होगी कि हिन्दू परिवारों में महिलाओं का सम्मान सही रूप में श्वेतकेतु ऋषि द्वारा 'एक पति की एक पत्नी, एक पत्नी का एक पति ' नियम बनाने के साथ शुरू हुआ। नैसर्गिक और नैतिकता आधारित होने के बावजूद इसे लेकर नकारात्मक प्रयास होते रहे किन्तु अंतत: मौजूदा कानून भी वैदिक कालीन इस रिफार्म को स्वीकार करते हैं।
श्वेतकेतु एक तत्वज्ञानी आचार्य थे, जिनका उल्लेख शतपथ ब्राह्मण, छान्दोग्य, बृहदारण्यक आदि उपनिषदों में मिलता है। उनकी कथा कौशीतकि उपनिषद में मूलत: आती है।हिन्दुओं में प्रचलित विवाह पद्धति, एक पति और एक पत्नी प्रथा को शुरू करवाने मे इनकी ही पहल वह आधार रही जिसके फलस्वरूप हिन्दू धर्म ही नहीं इससे निकले उप धर्म, अन्य अनेक धर्मों मे भी समाज की मूल इकाई परिवार और दाम्पत्य को नैतिक आधार और बल मिला।
परिचय...
'कौशीतकि ' उपनिषद के अनुसार श्वेतकेतु ऋषि, गौतम ऋषि के वंशज और आरुणि के पुत्र थे। छांदोग्य में उनको उद्दालक आरुणि का पुत्र बताया गया है। ये पांचाल देश के निवासी थे और विदेहराज जनक की सभा में भी गए थे। अद्वैत वेदांत के महावाक्य 'तत्वमसि' का, जिसका उल्लेख छांदोग्य उपनिषद में है, उपदेश इन्हें अपने पिता से मिला था। इसके एक प्रश्न के उत्तर में पिता ने कहा था- "तुम एवं इस सृष्टि की सारी चराचर वस्तुएँ एक है एवं इन सारी वस्तुओं का तू ही है (तत्त्वमसि)।" इन्होंने एक बार ब्राह्मणों के साथ दुर्व्यवहार किया, जिससे इनके पिता ने इनका परित्याग कर दिया था। इनका विवाह देवल श्रषि की कन्या सुवर्चला के साथ हुआ था और अष्टावक्र इनके मामा थे।
समाज सुधारक...
श्वेतकेतु का समय पाणिनी से पहले का माना जाता है। शास्त्रों के जनकार उन्हें हिंदुओं में व्याप्त कुरीतियों को खत्म कर समाज और राज्य व्यवस्था को सुधारने वाले प्रभावी कदम उठाने में सक्षम प्रथम समाज सुधारक के रूप में मानते हैं.। समाज कल्याण की दृष्टि से इन्होंने अनेक नियमों की स्थापना की।
महाभारत में आए एक उल्लेख के अनुसार एक ब्राह्मण ने इनकी माता का हरण कर लिया था। इसी पर श्वेतेकेतु ने पुरुषों के लिए एक पत्नी व्रत और महिलाओं के लिए पतिव्रत का नियम बनाया । उन्होंने यह मान्यता स्थापित कि, परस्त्री गमन पर रोक लगाई। इन्होंने यह नियम प्रचारित किया कि पति को छोड़कर पर पुरुष के पास जाने वाली स्त्री तथा अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री से संबंध कर लेने वाला पुरुष दोनों ही भ्रूण हत्या के अपराधी माने जाएँ।
श्वेतकेतु की कथा महाभारत के आदिपर्व में है और उनके द्वारा प्रचारित यह नियम धर्म शास्त्र में अब तक मान्य है। एक बार अतिथि सत्कार में उद्दालक ने अपनी पत्नी को भी अर्पित कर दिया। इस दूषित प्रथा का विरोध श्वेतकेतु ने किया। इस प्रकार यह प्रथा श्वेतकेतु ने बन्द करवायी।
(।- पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम:भारतीय चरित कोश,लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय')
भारतीय परंपरा में स्त्री पुरुष के पवित्र विवाह बंधन में विवाह सूक्त की रचना सूर्य-सावित्रि से हुई है ! विवाह अवसर पर पुरुष द्वारा स्त्री को प्रदान किये जाने वाले सात वचन और मंत्रोचारण की रचना हो जाने पर भी विवाह सम्बन्ध में अधिक संवेदनशीलता और पवित्रता के साथ साथ शुचिता को जोड़ा जाना अभी शेष था
(विवाह सूक्त)...
विवाह सूक्त - ऋग्वेद संहिता के दशम मंडल के 85वें सूक्त को विवाहसूक्त नाम से जाना जाता है। वैसे अथर्ववेद में भी विवाह के दो सूक्त हैं। इस सूक्त में सूर्य की पुत्री 'सूर्या तथा सोम के विवाह का वर्णन है। अशिवनी कुमार इस विवाह में सहयोगी का कार्य करते हैं। यहां स्त्री के कर्तव्यों का विस्तार से वर्णन है। उसे सास-ससुर की सेवा करने का उपदेश दिया गया है। परिवार का हित करना उसका कर्तव्य है। साथ ही स्त्री को गृहस्वामिनी, गृह पत्नी और 'साम्राज्ञी' कहा गया है। अत: स्त्री को परिवार में आदरणीय बताया गया है।
विवाह संबंधी नियम और व्यवस्था कई और हिन्दू धर्मग्रंथों में भी हैं किन्तु ऋग्वेद संहिता के विवाह सूक्त ही इनके मूल में हैं।
हिंदू विवाह अधिनियम १९५५(एक्ट नं.25) में सामायिक व्यवस्था के अनुरूप विवाह संबंधी परंपरागत परिवर्तन तो हुए किन्तु विवाह या परिवार संस्था को मजबूती ही मिली।
विजय लक्ष्मी सिंह
एडिटर इन चीफ
आईएनए न्यूज़ एजेंसी