अनूठी पहल उम्मीद के खेत में लहलहाती केले की फसल
अनूठी पहल उम्मीद के खेत में लहलहाती केले की फसल
हापुड़.
उत्तर प्रदेश के जनपद हपुड़ में एक और जहां पढ़ा लिखा युवा नौकरी की तलाश में शहर शहर भटकता है। वहीं एक युवा किसान युवाओं के अलावा गन्ने और गेहूँ धान की खेती करने वालों के लिए मिसाल है। लाखों की नौकरी छोड़कर गांव की ओर रूख करने के बाद इस युवा किसान ने साउथ में होने वाली खेती को ही अपना भविष्य बना लिया। फिर क्या था बह निकली धन की नहर खेत से।
आप को बता दे की धौलाना कस्बा के मिलक मढ़ैया के रहने वाले जितेंद्र सिंह पुत्र कृपाल सिंह ने 1997 में बीकाॅम किया था।जितेंद्र सिंह ने कई साल तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होने वाली आम खेती गन्ना, धान और गेहूं की फसल से परिवार का पालन पोषण करने का बीड़ा उठाते रहे। लेकिन जैसे हर गन्ना किसान बदहाली की जिंदगी जीता है, वैसे ही जितेंद्र के सामने भी सरकारी तंत्र की सुस्ती, फसल को औने पौने दाम में बेचने की मजबूरी या फिर गन्ने का लेटलतीफ होने वाले भुगतान ने कुछ नया करने की उमंग पैदा कर दी। किसान मेले में लगातार जाने का फायदा यह हुआ कि केले की खेती करने का मन बना लिया।
जितेंद्र सिंह ने बताया कि उन्होंने बिना कुछ परवाह किए ही परंपरागत खेती से हटकर 45 बीघे के खेत में केले की पौध लगा डाली। केले की जी-9 बेड़ को लाकर 45 बीघे में 6-6 फुट के अंतर पर 11 हजार 250 पेड़ लगा दिए। पेड़ों की जमकर सेवा की और 14 महीने के बाद मेहनत रंग लाई। उन्होंने बताया कि पहली फसल से उन्हें गन्ने की फसल से दोगुना फायदा हुआ। गन्ने की फसल से एक बीघे से उन्हें 18-20 हजार रुपये की कमाई होती थी, जिसमें 8-10 हजार रुपये की लागत आ जाती थी। उन्हें कुल मिलाकर 10-12 हजार रुपये ही एक बीघे से मुनाफा हो पाता था। जबकि केले की पहली फसल से उन्होंने 75-80 हजार रुपये एक बीघे से कमाए। जिसमें 20-25 हजार उनकी लागत आई। उन्होंने एक बीघे से लगभग 50-55 हजार रुपये का मुनाफा कमाया। खास बात तो यह है कि लाॅकडाउन में भी साहिबाबाद, दिल्ली, नोएडा के सब्जी व्यापारी गांव में आकर उनकी खेती की फसल को नकद भुगतान करके ले गये। जबकि गन्ने की फसल के भुगतान के लिए हर किसान सरकारी तंत्र की चौखट पर गुहार लगाता लगाता अधमरा हो जाता है।
आरिफ कस्सार
हापुड़.
उत्तर प्रदेश के जनपद हपुड़ में एक और जहां पढ़ा लिखा युवा नौकरी की तलाश में शहर शहर भटकता है। वहीं एक युवा किसान युवाओं के अलावा गन्ने और गेहूँ धान की खेती करने वालों के लिए मिसाल है। लाखों की नौकरी छोड़कर गांव की ओर रूख करने के बाद इस युवा किसान ने साउथ में होने वाली खेती को ही अपना भविष्य बना लिया। फिर क्या था बह निकली धन की नहर खेत से।
आप को बता दे की धौलाना कस्बा के मिलक मढ़ैया के रहने वाले जितेंद्र सिंह पुत्र कृपाल सिंह ने 1997 में बीकाॅम किया था।जितेंद्र सिंह ने कई साल तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होने वाली आम खेती गन्ना, धान और गेहूं की फसल से परिवार का पालन पोषण करने का बीड़ा उठाते रहे। लेकिन जैसे हर गन्ना किसान बदहाली की जिंदगी जीता है, वैसे ही जितेंद्र के सामने भी सरकारी तंत्र की सुस्ती, फसल को औने पौने दाम में बेचने की मजबूरी या फिर गन्ने का लेटलतीफ होने वाले भुगतान ने कुछ नया करने की उमंग पैदा कर दी। किसान मेले में लगातार जाने का फायदा यह हुआ कि केले की खेती करने का मन बना लिया।
जितेंद्र सिंह ने बताया कि उन्होंने बिना कुछ परवाह किए ही परंपरागत खेती से हटकर 45 बीघे के खेत में केले की पौध लगा डाली। केले की जी-9 बेड़ को लाकर 45 बीघे में 6-6 फुट के अंतर पर 11 हजार 250 पेड़ लगा दिए। पेड़ों की जमकर सेवा की और 14 महीने के बाद मेहनत रंग लाई। उन्होंने बताया कि पहली फसल से उन्हें गन्ने की फसल से दोगुना फायदा हुआ। गन्ने की फसल से एक बीघे से उन्हें 18-20 हजार रुपये की कमाई होती थी, जिसमें 8-10 हजार रुपये की लागत आ जाती थी। उन्हें कुल मिलाकर 10-12 हजार रुपये ही एक बीघे से मुनाफा हो पाता था। जबकि केले की पहली फसल से उन्होंने 75-80 हजार रुपये एक बीघे से कमाए। जिसमें 20-25 हजार उनकी लागत आई। उन्होंने एक बीघे से लगभग 50-55 हजार रुपये का मुनाफा कमाया। खास बात तो यह है कि लाॅकडाउन में भी साहिबाबाद, दिल्ली, नोएडा के सब्जी व्यापारी गांव में आकर उनकी खेती की फसल को नकद भुगतान करके ले गये। जबकि गन्ने की फसल के भुगतान के लिए हर किसान सरकारी तंत्र की चौखट पर गुहार लगाता लगाता अधमरा हो जाता है।
आरिफ कस्सार
आई एन ए न्यूज़ हापुड़